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श्राद्धविधि / ४६
दशार्णभद्र का दृष्टान्त
अभिमानपूर्वक दशार्णभद्र ने सोचा- पहले किसी ने वन्दन न किया हो ऐसी ऋद्धि और समृद्धि के साथ भगवान महावीर प्रभु की वन्दना के लिए जाऊंगा । इस प्रकार विचार कर उसने आभूषणादि सहित सुन्दर वेष धारण किया। परिजनों व दास-दासियों को भी सुन्दर वस्त्रालंकारों से सुशोभित किया । प्रत्येक हाथी के दन्तशूल को स्वर्ण रजत अलंकारों से मढ़ दिया । अनन्तर चतुरंगिणी सेना सहित अपने अन्तःपुर की स्त्रियों को सोने और चांदी की पाँच सौ पालकियों में बिठा कर प्रत्यन्त वैभवपूर्वक वह भगवान महावीर की वन्दना करने हेतु निकला ।
दशार्णभद्र के अभिमान को दूर करने के लिए सौधर्मेन्द्र भी उसी समय अपनी दिव्य ऋद्धियों के साथ प्रभु की वन्दना के लिए आया ।
वृद्ध ऋषिमण्डल स्तव में कहा है- सौधर्मेन्द्र ने अपनी विक्रियालब्धि से ५१२ मस्तकों वाले चौंसठ हजार हाथी बनाये । प्रत्येक हाथी के प्रत्येक मस्तक पर आठ-आठ दन्तशूल बनाये । - प्रत्येक दन्तशूल पर आठ-आठ बावड़ियाँ निर्मित कीं । प्रत्येक बावड़ी में एक-एक लाख पंखुड़ी वाले आठ-आठ कमल बनाये । प्रत्येक पंखुड़ी पर बत्तीस दिव्य नाटकों की रचना की और कमल की कणिका में एक-एक दिव्य प्रासाद बनाया। प्रत्येक प्रासाद में अग्रमहिषियों के साथ " बैठे हुए इन्द्र प्रभु के गुणगान हो रहे थे ।
इस प्रकार अतुल वैभव के साथ ऐरावत हाथी पर बैठकर आ रहे इन्द्र को देखकर दशार्णभद्र राजा ने दीक्षा स्वीकार कर अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण की यानी "भौतिक ऋद्धि तो इन्द्र के मुकाबले मैं नहीं ला सका तो अब मैं भगवान के पास दीक्षा ले लू - इन्द्र दीक्षा ले नहीं सकता ।" ऐसा विचार करके दशार्णभद्र ने दीक्षा अंगीकार कर ली और इस तरह वह अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण
कर सका ।
पूर्वाचार्यों ने शक्रेन्द्र रचित हाथी तथा कमलों आदि की संख्या इस प्रकार बतलाई है - एक हाथी के ४०९६ दन्तशूल, ३२७६८ बावड़ियाँ, २६२१४४ कमल और उतनी ही संख्या में करिंणका में रहे प्रासादावतंसक थे । एक कमल की २६,२१,४४,००,००० पंखुड़ियाँ थीं । इस प्रकार के ६४,००० ऐरावण हाथी थे । उन हाथियों के ३२७६८००० मुख थे तथा २६२१४४००० दाँत थे । कुल बावड़ियाँ २०६७१५२००० थीं । सब मिलाकर १६७७७२१६००० कमल थे । पंखुड़ियाँ सोलह कोटाकोटि, सतत्तर लाख करोड़, बहत्तर हजार करोड़, एक सौ साठ करोड़ (१६७७७२१,६०,००,००,००० ) थीं । नाटकों की संख्या पाँच सौ छत्तीस कोटाकोटि, सत्तासी लाख नौ हजार एक सौ बीस करोड़ ( ५३६८७०६१२०००,००,००० ) थी । आवश्यक सूत्र की चूरिंग में कहा गया है ।
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• इस प्रकार
एक-एक प्रासादावतंसक में आठ-आठ प्रग्र महिषियों के साथ सर्व इन्द्रों की संख्या, समस्त कमलों के बराबर थी तथा इन्द्राणियों की संख्या १३४२१७७२८००० थी । प्रत्येक नाटक में समान शृंगार एवं नाट्योपकरण वाले १०८ देवकुमार और १०८ देवियाँ थीं ।
वाद्ययन्त्र–१ शंख, २ श्रृंग, ३ शंखिका, ४ पेया, ५ परिपरिका ६ परणव, ७ पटह,