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श्रावक जीवन-दर्शन / ३५ शिष्य का प्रश्न - हम इतना भी नहीं जानते हैं कि आहार किसे कहते हैं और प्रणाहार किसे कहते हैं ?
प्राचार्य का उत्तर- जो स्वयं भूख-प्यास को शान्त करता है, उसे आहार कहते हैं । अशन, पान, खादिम और स्वादिम के भेद से वह चार प्रकार का है । अथवा उस आहार में जो नमक आदि डाला जाता है, उसे भी आहार समझना चाहिए । अशन में कूर (भात) स्वयं क्षुधा शान्त करता है । पान में छाछ आदि, खादिम में फल आदि और स्वादिम में गुड़ आदि भी श्राहार का कार्य करते हैं ।
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क्षुधा के शमन में असमर्थ होने पर भी आहार में जिसका उपयोग किया जाता है, वह भी, आहार से मिश्रित अथवा स्वतन्त्र प्रहार होता है । अशन में नमक, हींग, जीरा आदि; पानी में कपूर आदि, आम्र आदि फल में सुत्त आदि, सूठ में गुड़ आदि का उपयोग किया जाता है । ये कपूर आदि क्षुधा को शान्त करने में समर्थ नहीं होने पर भी आहार आदि में उपकारक होने से आहार कहलाते हैं । "अथवा, भूख से पीड़ित व्यक्ति अपनी भूख को शान्त करने के लिए कीचड़ जैसी भी जो कोई वस्तु पेट में डालता हो, वह वस्तु आहार कहलाती है औषधि में से कुछ आहाररूप हैं और कुछ अणाहाररूप । औषधि में शक्कर आदि आहार कहलाती है और सर्प से काटे हुए व्यक्ति को जो मिट्टी आदि खिलाई जाती है, वह अरणाहार रूप है ।"
अथवा, जो पदार्थ खाने से भूखे व्यक्ति को स्वाद प्राता हो, वह सब आहार कहलाता है और भूखे व्यक्ति को भी जो पदार्थ खाने-पीने में अप्रिय लगता हो वह प्रणाहार कहलाता है । मूत्र, नीम आदि की छाल, पंचमूलादि जड़ें, आंवला, हरड़े, बहेड़ा आदि फल प्रणाहार समझने चाहिए, ऐसा चूरिंग में कहा है ।
निशीथ चूरिंग में तो लिखा है - 'नीम आदि की छाल और उन्हीं की निम्बोली आदि फल और उन्हीं की जड़ें प्रणाहारी हैं ।'
पच्चक्खाण के पाँच स्थान
(१) नवकारसी आदि कालपच्चक्खाण प्रायः चौविहार करने चाहिए ।
(२) दूसरे स्थान में एकादि विगईत्याग और नीवि आयंबिल का पच्चक्खाण लिया जाता है । जिसे विगई का त्याग न हो उसे भी प्रायः अभक्ष्य महाविगई (मद्य, मांस, मधु व मक्खन) का त्याग होने से विगई का पच्चक्खाण करना चाहिए ।
(३) तीसरे स्थान में एकासना, बियासना, दुविहार, तिविहार व चौविहार का पच्चक्खाण लेना चाहिए ।
(४) चौथे स्थान पानी का पच्चक्खाण लेना चाहिए ।
(५) पाँचवें स्थान में पूर्वगृहीत सचित्त आदि चौदह नियमों के संक्षेप रूप देशावगासिक का पक्चक्खाण प्रातः एवं सायंकाल में लेना चाहिए ।
उपवास, श्रायंबिल, नीवि आदि प्रायः तिविहार या चौविहार होती हैं परन्तु अपवाद से