________________
श्रावक जीवन दर्शन/३९
• प्रतिदिन स्थिर होकर मस्तक के बाल दूसरे के पास साफ कराने चाहिए-परन्तु स्वयं अपने दोनों हाथों से बाल साफ न करें।
• तिलक करने के लिए और मंगल के लिए अपना मुख दर्पण में देखना चाहिए। जिस दिन दर्पण में मस्तक रहित अपना धड़ दिखाई दे, उस दिन से पन्द्रह दिन बाद अपनी मृत्यु समझनी चाहिए।
• उपवास, पोरिसी आदि पच्चक्खाण वाले को दाँत साफ करने की आवश्यकता नहीं है, उसके बिना भी शुद्धि समझनी चाहिए, क्योंकि तप महाफलदायी है ।
लोक में भी उपवास आदि में दंतशोधन बिना ही देव-पूजा आदि की जाती है।
"विष्णुभक्ति चन्द्रोदय' में कहा है-प्रतिपदा, अमावस्या, छठ, मध्याह्न, नवमी और संक्रान्ति के दिन दन्तशोधन नहीं करना चाहिए।
• उपवास तथा श्राद्ध में दंतशोधन नहीं करना चाहिए, क्योंकि इन दिनों दाँत और काष्ठ का संयोग सात कुलों का नाश करता है।
• किसी भी व्रत में ब्रह्मचर्य, अहिंसा और सत्य का पालन करना चाहिए तथा मांस का त्याग अवश्य करना चाहिए।
• बार-बार पानी पीने से, तांबूल खाने से, दिन में सोने से और मैथुन का सेवन करने से उपवास दूषित होता है ।
जहाँ चींटी के बिल न हों, नीलफूल, शैवाल, कुथु आदि जीव पैदा नहीं होते हों, जहाँ की भूमि विषम न हो, नीचे की जमीन छिद्र वाली न हो, ऐसी भूमि पर संपातिम जीवों की यतनापूर्वक
ए परिमित जल से स्नान करना चाहिए। 'दिनकृत्य में कहा है-त्रस आदि जीवों से रहित विशुद्ध भूमि पर अचित्त या छने हुए सचित्त जल से विधिपूर्वक स्नान करना चाहिए। व्यवहार शास्त्र में तो इस प्रकार कहा है
• नग्न होकर स्नान नहीं करना चाहिए। • रोग से पीड़ित हों तो स्नान नहीं करना चाहिए। • परदेश से आकर तुरन्त स्नान नहीं करना चाहिए।
सभी वस्त्रों के साथ स्नान नहीं करना चाहिए । भोजन करने के बाद तुरन्त स्नान नहीं करना चाहिए। आभूषण आदि शृंगारसहित स्नान नहीं करना चाहिए। भाई आदि को पहुंचाने गये हों तो आकर तुरन्त स्नान नहीं करना चाहिए।
कोई भी मंगल करने के बाद तुरन्त स्नान नहीं करना चाहिए।
• अज्ञात जल में, जिसमें प्रवेश कठिन हो ऐसे जल में, मलिन लोकों से दूषित जल में, वृक्ष से छन्न तथा शैवाल युक्त जल में स्नान नहीं करना चाहिए।