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श्राद्धविषि/३१
चौवह नियम
____ जिसने पहले चौदह नियम ग्रहण किये हों, उसे प्रतिदिन उनका संक्षेप करना चाहिए और जिसने पहले नहीं लिये हों, उसे भी यथाशक्ति ग्रहण करने चाहिए। ये चौदह नियम निम्नांकित हैं
(१) सचित्त-मुख्यतया तो श्रावक को सचित्त का त्याग ही करना चाहिए। जो सम्पूर्ण .त्याग न कर सके उसे नामग्रहण पूर्वक सामान्यतया एक-दो आदि की छूट रखकर नियम करना चाहिए।
कहा है-"सुश्रावक निरवद्य, निर्जीव और परिमित आहार के द्वारा निर्वाह करने वाले होते हैं ।
सचित्त (मांस) खाने की इच्छा से मत्स्य (तंदुलिया) मरकर ७वीं नरक भूमि में जाता है अतः मन से भी सचित्त आहार ग्रहण करने की इच्छा नहीं करनी चाहिए।
(२) द्रव्य-जो मुख में डाला जाता है, वह द्रव्य कहलाता है। जैसे खिचड़ी, रोटी, निवीयाते लड्डू , लपसी, (तिल) पापड़ी, चूरमा, करंबा, खीर, आदि तथा अनेक धान्य आदि से बनी एक वस्तु या जिसका एक नाम प्रचलित हो, वह भी एक द्रव्य कहलाता है तथा एक धान्य की ही बनी हुई पतली रोटी, जाड़ी रोटी, पराठे, खाखरे, घूधरी, ढोकले, थूली, बाट, करिणक्क आदि अलग-अलग नाम व स्वाद के कारण अलग-अलग द्रव्य कहलाते हैं। फली (चवले आदि की) और फलिका (मूग आदि की) में नाम की समानता होने पर भी स्वाद अलग होने से और अलग-अलग स्वाद वसे ही रहने से अलग-अलग द्रव्य गिने जाते हैं। द्रव्य की गिनती में सचित्त और विगई की पृथक् गिनती नहीं की जाती है। जैसे लड्डू में घी और शक्कर मिली हुई है तो भी द्रव्य एक ही कहलाता है। यहाँ द्रव्य की गिनती में घी और शक्कर की अलग गिनती नहीं की जाती है। अथवा नियम लेने वाले के अभिप्रायानुसार व सम्प्रदाय के अनुसार द्रव्यों की गणना कर सकते हैं। धातु की सली, हाथ की अंगुली आदि की गिनती द्रव्य में नहीं होती है।
(३) विगई-भक्ष्य विगइयाँ छह हैं-दूध, दही, घी, तैल, गुड़ और पक्वान्न। इन छह में से प्रतिदिन एक, दो या तीन के त्याग का नियम कर सकते हैं।
(४) उपानह-पैर में पहिनने के जूते, चप्पल, बूट, मौजे आदि। काष्ठपादुका आदि से तो अनेक जीवों की विराधना की सम्भावना होने से श्रावक को पहिनना योग्य नहीं है।
(५) तंबोल-पान, सुपारी, खैरसार, कत्था आदि स्वादिम कहलाते हैं, उनका नियम
करना चाहिए।
(६) वस्त्र-पाँचों अंगों पर पहिनने का वेष। धोती, पौतिक आदि रात्रि के वेष संख्या में नहीं गिनते हैं।
(७) कुसुम-मस्तक, कण्ठ, शय्या, तकिये के पास रखने योग्य फूलों का परिमाण निश्चित करना। स्व उपभोग में नियम होने पर भी देवपूजा के लिए फूल उपयोग में ले सकते हैं ।
(८) वाहन-रथ, घोड़ा, पाड़ा, पालकी, (रेल, मोटर, साइकिल, बस, टैक्सी) आदि की संख्या निश्चित करना।