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श्राद्धविधि / २८
जहाँ अनेक लोगों का आवागमन होता हो वहाँ गिरा हुआ वर्षा का जल जब तक परिणत नहीं होता है, तब तक मिश्र कहलाता है । उसके बाद प्रचित्त हो जाता है - जंगल की भूमि में गिरा हुआ वर्षा का जल तत्क्षण मिश्र होता है, उसके बाद गिरता हुआ पानी सचित्त होता है ।
चावल के धोवरण के विषय में प्रदेशत्रिक को छोड़कर जब तक तंदुलोदक मलिन होता है, तब तक मिश्र कहलाता है और जब वह निर्मल हो जाता है, तब अचित्त कहलाता है ।
प्रदेशत्रिक - ( १ ) कुछ प्राचार्यों का मत है कि चावल का धोवरण चावल को धोने से बर्तन से दूसरे बर्तन में डालने पर जो छोटे उड़ते हैं, वे जब तक नहीं सूख जाते हैं, तब तक वह जल मिश्र होता है ।
(२) एक बर्तन से दूसरे बर्तन में चावल का धोवरण डालने पर जो परपोटे पैदा होते हैं, वे जब तक नहीं फूटते हैं, तब तक उसे मिश्र समझना चाहिए ।
(३) कुछ प्राचार्यों का मत है कि वे चावल जब तक पकते नहीं हैं, तब तक वह जल मिश्र कहलाता है ।
ये तीनों प्रदेश प्रमाणभूत नहीं हैं। क्योंकि बर्तन सूखा हो, पवन और अग्नि की विद्यमानता व अविद्यमानता के अनुसार उन जल-बिन्दुनों के सूखने व चावल के पकने आदि में कमज्यादा समय लगता है, अतः इससे निश्चित कालमर्यादा सिद्ध नहीं होती है ।
अत: जब तक वह धोवण का जल एकदम स्वच्छ न हो जाय तब तक उसे मिश्र समझना चाहिए और उसके बाद उसे अचित्त समझना चाहिए ।
( छत का किनारा) का पानी, धूम से काले एवं सूर्य की किरणों से तपे हुए नीव्र के सम्पर्क से प्रचित्त हो जाता है, इसलिए उसे लेने में कोई विराधना नहीं है । कोई कहते हैं किऐसे पानी को अपने पात्रों में लेना । आचार्य कहते हैं कि अशुचि होने से अपने पात्रों में नहीं लेना चाहिए, अतः गृहस्थ के कुंडी आदि भाजन में लेना चाहिए ।
वर्षा चालू हो तब वह पानी मिश्र होता है। वर्षा रुक जाने के अन्तर्मुहूर्त बाद वह ले सकते हैं । वह पानी प्रचित्त हो जाने पर, तीन प्रहर के बाद पुनः सचित्त हो जाता है अतः उसमें क्षार डालना चाहिए। ऐसा करने से पानी स्वच्छ भी हो जाता है और सचित्त भी नहीं होगा । इस प्रकार नियुक्ति टीका' का कथन है ।
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कुछ समय पहले ही किया हुआ चावल का पहला, दूसरा और तीसरा धोवन मिश्र होता है। अधिक समय तक पड़ा हुआ हो तो वह धोवन प्रचित्त होता है । चौथी, पाँचवीं बार किया हुआ धवन बहुत समय तक पड़ा रहा हो तो भी सचित्त ही होता है ।
श्रचित्त जल का काल-मान
प्रासुक जल के काल-मान को बताते हुए 'प्रवचनसारोद्धार' आदि में कहा है
तीन बार उफान आया हुआ ( उबाला हुआ ) प्रासुक गर्म जल मुनियों के लिए कल्प्य है ।