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वक्तव्य
सुनना मनुष्य की कुंदरती क़ितरत है । अतः जिसके पास अपने यहाँ को भूतकालीन बातें नहीं होतीं वे दूसरों की सुनकर अपना शौक पूरा करते हैं। इसी लिये संसार की प्रत्येक जाति अपना भूतकालीन इतिहास निर्माण करती हैं, ताकि उसके पुत्रों को दूसरों का मुँह देखना न पड़े । क्यों हुी अच्छा ही यदि हमारी समजं भी अपने घर की चीज को बर्तने का प्रयास प्रारम्भ करदे । महात्मा गान्धी भी भूतकालीन हरिश्चन्द्रं जैसी कहानियों से ही प्रभावित होकर मिस्टर से महात्मां हुये हैं ।
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किस अजमत माजी को नं मुहमि संमभो । कोमें जाग उठनी हैं अक्सर इन्हीं अकसानों से ॥ "खाँ" यह मैं मानता हूँ कि प्रस्तुत पुस्तक को कोई भी समझदार व्यक्ति महत्व नहीं दे सकता और वास्तव में महत्व देने योग्य भी नहीं इतिहास और साहित्य की दृष्टि से भी इसमें अनेक भही और मोटी भूलों का रहना सम्भव है। इस एक प्रकार से समस्त राजपुतान के जैन-वीरों का इतिहास भी नहीं कह सकते । इसमें कोटा, बूंदी, जयपुर आदि कई राजपूतानान्तरगत स्थानों का उल्लेख नहीं किया जा सका है। पर, इसमें मेरा तनिक भी दोप नहीं है । रात-दिन परिश्रम करके जितना भी मैं उपलब्ध साहित्य प्राप्त कर सका और गुणियों के जूतों में बैठकर जो भी मैं जान सका, वह सब मैंने प्रस्तुत पृष्ठों में बुखेर देने की चेष्टा की है। साधनाभाव और अनुभवहीनता के कारण जो पुस्तक में त्रुटियाँ रह गई हैं उनका मैं ज़िम्मेदार नहीं । हाँ, प्रमाद और पक्षपात को
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