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को पुनरुक्त करते रहोगे। वस्तुत: तुम पुनरुक्ति कर रहे हो यह कहना भी ठीक नहीं है. तुम इसी को पुन: कर रहे हो, एक नये काम की तरह-क्योंकि पिछली बार तुम चूक गए थे। यह कोई पुनरुक्ति नहीं है।
मेरी समझ ऐसी है. कि कोई गलती कभी दोहराई नहीं जाती, यदि एक बार तुमने इसे गलती की भांति समझ लिया तो काफी है। यदि तुम इसे दोहराते हो तो इसका मतलब है कि तुम इसे नये ढंग से कर रहे हो, क्योंकि अतीत अभी तक तुम्हारी चेतना में प्रविष्ट नहीं हुआ है। तुम इसे दुबारा पहली बार कर रहे हो लेकिन यह पुनरुक्ति नहीं है। अगर तुम इसे समझ चुके हो तो इसको दोहराया नहीं जा सकता। समझ एक कीमिया है, यह तुम्हें रूपांतरित करती है। इसलिए मैं तुम्हें बहुत चालाक, हिसाबी-किताबी, और सदा यह सोचने वाला कि क्या अच्छा है और क्या बुरा है, और क्या करना है और क्या नहीं करना है, और क्या नैतिक है, क्या अनैतिक है, यह बनने को नहीं कह रहा हूं। मैं यह सब नहीं कह रहा हूं। मैं तो सिर्फ इतना कह रहा हूं कि तुम जहां से भी गुजरो पूर्ण सजगता से गुजरो ताकि जो कुछ भी गलत है दोहराया न जाए।
जागरूकता का यही सौंदर्य है कि जो कुछ भी सही है उसका इससे संवर्धन होता है, और जो कुछ भी गलत है वह इसके द्वारा विनष्ट हो जाता है। जागरूकता शुभ के लिए जीवन ऊर्जा की भांति और अशुभ के लिए मृत्यु ऊर्जा की भांति है। जागरूकता शुभ के प्रति आशीष और अशुभ के प्रति अभिशाप के रुप में कार्य करती है। यदि तुम पाप के लिए मेरी परिभाषा पूछो तो यह मेरी परिभाषा है. जो कुछ भी परिपूर्ण जागरूकता के साथ किया जा सके पाप नहीं है; वह जो पूर्ण जागरूकता के साथ न किया जा सके पाप है। वह जिसे बिना जागरूकता के ही किया जा सके पाप है, और वह जो सिर्फ जागरूकता में ही किया जा सके पुण्य है। इसलिए पाप और पुण्य के बारे में भूल जाओ। जागरूकता और गैर-जागरूकता को याद रखो।
विकास का केंद्रीय तत्व होश और बेहोशी के मध्य में है और अधिक होशपूर्ण हो जाओ और बेहोशी को कम करो। अपनी ऊर्जा को जागरूकता से और अधिक प्रदीप्त होने के लिए अर्पित करो, बस यही तो है।
प्रश्न:
प्यारे ओशो, क्या आप किसी बात को गंभीरता से नहीं ले सकते?