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अब असली समस्या और नकली समस्या में अंतर क्या है? झूठी समस्या वह है जिसे हल किया जा सके, फिर भी कुछ न सुलझे। और सच्ची समस्या वह है जो भले ही हल न हो, फिर भी इसे सुलझाने के प्रयास में ही बहुत कुछ सुलझ जाए। इस प्रयास में ही तुम और सजग, और जानकार, और समझदार हो जाते हो। तुम अपने बारे में इतना कुछ जान लेते हो, जितना तुमने पहले कभी न जाना था।
समस्या स्वयं का सामना करने का, अपने अंतस की तीर्थयात्रा पर निकलने का एक अवसर है। समस्या तो एक द्वार है। इसका अपने अस्तित्व में उतरने कि लिए उपयोग कर लो।
तो मेरा उत्तर है : समस्या विकास का एक अवसर है। समस्या परमात्मा की भेंट, दिव्यता से एक चुनौती है। इसका सामना करो, इसका अतिक्रमण करने के, इससे ऊपर जाने के उपाय खोजो और तुम अदभुत रूप से लाभान्वित होंगे।
प्रश्न:
आप कहते है, वही गलती दुबारा मत करो। जब तक मैं अपने मन को, मूल्यांकन, तुलना और निर्णय हेतु बीच में न लाऊं, तब तक मैं ऐसा कैसे कर सकता हूं? और तब मुझे न कहना पड़ता है।
जब मैं कहता हूं एक गलती को दुबारा मत करो, तो मैं मूल्यांकन, निर्णय, तुलना करने को नहीं
कह रहा हूं। मैं तो देखने को कह रहा हैजब तुम गलती कर रहे होते हो, इसे ऐसी समग्रता से देखो कि तुम्हें दिख जाए कि यह गलती है। इस देखने में ही यह गिर जाती है, तुम उसे कभी दोहरा नहीं पाओगे।
उदाहरण के लिए, अगर तुमने अपना हाथ आग में डाला और यह जल गया है। अगली बार जब तुम आग के पास होगे तो क्या तुम अरस्तु का न्यायिक तर्क प्रयोग करोगे, कि यह भी एक आग है, सारी अग्निया जलाती हैं, इसलिए मुझे अपना हाथ इसमें नहीं डालना चाहिए। क्या तुम अतीत के अनुभव से तुलना करोगे? क्या तुम मूल्यांकन करोगे? यदि तुमने ऐसा किया तो तुम वही गलती दुबारा करने से बच नहीं पाओगे। क्योंकि, तब तुम्हारा मन कहेगा, शायद यह आग कुछ अलग किस्म की है। और कौन जाने कि आग ने अपनो जीवन-शैली बदल ली हो। हो सकता है कि अब वह वैसा ही व्यवहार न करे। हो सकता है उस समय वह क्रोध में थी और इस समय वह क्रोध में नहीं है। और कौन जानता है कि कब क्या हो?