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वह मन जो मूल्यांकन करता है, निर्णय करता है, तुलना करता है, वह तो यह दिखा ही रहा है कि उसको बात समझ में नहीं आ पाई है। वरना मूल्यांकन और तुलना की जरूरत क्या है? यदि तुमने एक तथ्य को देख लिया है तो वह तथ्य ही पर्याप्त है। तुम आग से बचोगे। अत: जब तुम अनुभवों से गुजर रहे होतो सजग रहो, अंधे' और बहरे मत बनो। मैं पीछे देखने को नहीं कह रहा हूं। मैं तो अभी इसी समय में देखने के लिए कह रहा हूं जहां कहीं भी तुम हो वहीं, और यदि यह गलती है तो, यह स्वत: ही गिर जाएगी। एक गलती को गलती की भांति जानने से ही यह गिर जाती है। यदि यह खुद से ही नहीं गिर रही है तो इसका अभिप्राय यही है कि तुमने अभी पूरी तरह से नहीं जान पाया कि यह गलती है। कही न कहीं या किसी रूप में यह भ्रम बना रहता है कि यह गलती नहीं है।
लोग आकर मुझसे कहते हैं, हमें पता है क्रोध बुरा है, और हम यह जानते हैं कि यह जहरीला है, और हम जानते हैं कि हमारे लिए घातक है, लेकिन करें क्या? हम तो क्रोधित होते ही रहते हैं? वे क्या कह रहे हैं? वे कह रहे हैं कि उन्होंने सुना है लोग कहते हैं कि क्रोध बुरा है, उन्होंने शास्त्रों में पढ़ लिया है कि क्रोध जहरीला है लेकिन इसे उन्होंने स्वयं नहीं जाना है, अन्यथा बात समाप्त हो गई होती।
सुकरात ने कहा है ज्ञान ही सदगुण है। श्रेष्ठ है यह कथन। वह कहता है, जानने का अर्थ है, हो जाना। एक बार तुम जान लो कि यह दीवाल है, द्वार नहीं, तो तुम बार-बार जाकर अपना सिर उससे नहीं टकराते। एक बार पता चल गया कि यह दीवाल है तब तुम द्वार की खोज करते हो। एक बार तुम्हें
द्वार मिल गया तो तुम सदा ही द्वार से होकर गुजरते हो। यहां कोई बार-बार पिछले अनुभव के बारे में सोचने, तलना करने, निश्चय करने और निष्कर्ष निकालने का प्रश्न नहीं उठता है।
मैंने सुना है, एक बहरा पादरी स्वीकारोक्तिया, कनफेशंस सुन रहा था, तभी एक आदमी कठघरे में आया, कदमों पर झुका और बोला, ओह फादर, मैंने एक जघन्य कृत्य कर डाला है। मैंने अपनी मां की हत्या कर दी।
क्या? का पादरी कान के पीछे हाथ रख कर बोला।
मैंने अपनी मां की हत्या कर दी है, दोषी व्यक्ति कुछ जोर से बोला
क्या बात हुई, जरा जोर से कहो, ईश्वर के उस दूत ने आशा दी।'
मैंने अपनी मां की हत्या कर दी है, परेशान पापी जोर से चिल्लाया।
आह! पादरी ने कहा, कितनी बार?
बहरा आदमी तो बहरा आदमी है, अंधा आदमी तो अंधा आदमी है। यदि तुम अनुभव की बात नहीं सुनते, यदि तुमने अपने अनुभव के प्रति कान बंद कर रखे हैं, तब तुम बार-बार और बार-बार उसी