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उपाध्याय विनयविजय : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
23 कृति विक्रम संवत् १७१० के पश्चात् की प्रतीत होती है। (5) गुणस्थानकगर्मित वीर स्तवन- इसमें प्रभु महावीर की स्तुति करने के साथ मिथ्यात्वादि चौदह गुणस्थानों का स्वरूप स्पष्ट किया गया है। यह ७३ कड़ियों में गुजराती भाषा में निबद्ध है तथा इसमें अपनी गुरु परम्परा का स्मरण किया गया है। (6) जिणचेइयथवण- जैन माहाराष्ट्री प्राकृत भाषा में २७ पद्यों में निबद्ध इस कृति में जिनेश्वरों के चैत्यों को वंदन किया गया है। इसमें निम्नांकित चौदह परिपाटियों में वन्दन करते हुए उनके महत्त्व का भी प्रतिपादन किया गया है- १. अष्टापक तीर्थ २. सम्मेत शिखर ३. शत्रुजय तीर्थ ४. नंदीश्वर द्वीप ५. विहरमान जिनेश्वर ६. बीस तीर्थकर को वंदन ७. भरत एवं ऐरवत तीर्थ ८. १६० तीर्थकर ६. १७० तीर्थकर १०. भरतक्षेत्र की तीन चौबीसियों को वंदन ११. भरतक्षेत्र की पाँच चौबीसियों को वन्दन १२. पन्द्रह चौबीसियों को वन्दन १३. अनेक चौबीसियों को वन्दन १४. त्रैलोक्य के चैत्यों को वंदना (7) जिनचौबीसी- इस कृति के नाम से ही ज्ञात होता है कि इसमें आदि तीर्थंकर ऋषभदेव से लेकर चौबीसवें तीर्थकर महावीर स्वामी तक के सभी तीर्थंकरों की स्तुति की गई है। इसमें कुल २६ स्तवन हैं। जिनमें ऋषभदेव के दो, सुपार्श्वनाथ एवं पार्श्वनाथ के दो-दो तथा नेमीनाथ के तीन स्तवन हैं तथा शेष तीर्थंकरों की एक-एक स्तवन गुजराती भाषा में निर्मित है। किसी स्तवन में तीन कड़ी हैं तो किसी में सात कड़िया भी हैं। इस कृति की रचना विक्रम संवत् १७२५ होने की संभावना है। (8) पुण्य प्रकाश स्तवन- गुजराती भाषा में ८७ कड़ियों में इस कृति की रचना विक्रम संवत् १७२६ के रांदेर चातुर्मास में की गई थी। इसमें दोहों और ढालों का प्रयोग हुआ है। मुक्तिमार्ग की आराधना के लिए इसमें दस अधिकारों का प्रतिपादन हुआ है, यथा- १. अतिचारों की आलोचना २. महाव्रतों अथवा गुणवतों का आराधन ३. क्षमापना ४. हिंसा आदि अठारह पापों का त्याग ५. चार शरणों की स्वीकृति ६. दुष्कृत्यों की निन्दा ७. शुभकृत्यों का अनुमोदन ८. शान्त भावना का आराधन ६. अनशन और प्रत्याख्यान १०. नवकार मंत्र का स्मरण।
इसमें आराधना का विषय मुख्य होने से इसे 'आराधना स्तवन' भी कहते हैं। (७) विहरमान जिनवीसी-महाविदेह क्षेत्र में सम्प्रति सीमन्धर स्वामी आदि बीस तीर्थंकर आदि विचरण कर रहे हैं। उन्हीं को लक्ष्य करके प्रत्येक तीर्थकर पर इस कृति में एक-एक स्तवन की रचना की गई है। गुजराती भाषा में निर्मित इस कृति में बीस विहरमानों की स्तुति होने से इसे 'विहरमान जिनवीसी' कहते हैं। इसमें प्रत्येक तीर्थंकर पर कम से कम पाँच एवं अधिकतम सात कड़ियों में स्तवन किए गए हैं- १. सीमन्धर २. युगंधर ३. बाहु ४. सुबाहु ५. सुजात ६. स्वयंप्रभ ७.