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लोकप्रकाश का समीक्षात्मक अध्ययन | महोत्सव, प्रथम चक्रवर्ती, चतुर्थ आरे के २३ तीर्थकर एवं ११
| चक्रवर्ती, ६३ श्लाका पुरुषा तीसवाँ | १०६५ / ६० तीर्थकर नामकर्म के २० स्थान, स्थविरों के तीन प्रकार, वैयावृत्य
की आराधना, तीर्थंकर का विशेष विवेचन, ५६ दिक्कुमारियाँ, २२ | परीषह, उपसर्ग सम्बन्धी कथन, ध्यान का विस्तृत विवेचन, समवसरण, श्रावक के व्रत, तीर्थकर वाणी के ३५ गुण, २२ अभक्ष्य, पौषध एवं सामायिक के प्रकार, अष्ट प्रवचन माता, श्रावकों के ७३७ प्रकार, तीर्थकर देशना, ३४ अतिशय, निर्वाण
और उसका महोत्सव। इकतीसवाँ ६४० ५८ चक्रवर्ती होने के निमित्त कारण, राजा के छत्तीस गुण, चक्ररत्न की
उत्पत्ति, छह खण्ड को जीतने का उल्लेख, सिन्धुदेवी, वैताढ्य कटक, तमिना गुफा, सेनापति रत्न, १४ रत्न, वास्तुशास्त्र में प्रासाद
के १६ प्रकार, नवनिधान आदि। बत्तीसवाँ | ११२४ |७१ प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव का चरित्र वर्णन, सात कुलकर, सात
कल्पवृक्ष, केवलज्ञान, श्रेयांस कुमार, भरत चक्रवर्ती निर्वाण, भरत चक्रवर्ती को केवलज्ञान, अजितनाथ, सम्भवनाथ आदि तीर्थंकरों का चरित्र, पार्श्वनाथ एवं तीर्थंकर महावीर का चरित्र, अवसर्पिणी के दस आश्चर्य, पाँच अभिग्रह, गणधर आदि का विवेचन,
श्रावक-श्राविका, यक्ष-यक्षिणी का कथन। तैतीसवाँ | ४०८ | १४ | भरत आदि १२ चक्रवर्तियों का वर्णन, परशुराम चक्रवर्ती द्वारा
| संयम ग्रहण चक्रवर्ती की सामान्य विशेषताएँ, नव वासुदेव, नव
| प्रतिवासुदेव एवं नव बलदेवों का वर्णन।। चौंतीसवाँ ४४४ |७४ | पंचम आरक का वर्णन, आयुष्य, देहमान, गुरु-शिष्य, पिता-पुत्र
आदि का व्यवहार, साधुओं के प्रकार, श्रमणों के बकुश आदि प्रकार, छठे आरे का प्रारम्भ एवं उसका प्रभाव, मनुष्यों की | अवगाहना एवं आयुष्य, उत्सर्पिणी काल का प्रारम्भ, उसके विभिन्न
| आरकों का वर्णन, भावी जिनेश्वरों/तीर्थंकरों का कथन। पैंतीसवाँ | २१८ २२ पुद्गल परावर्तन के चार प्रकार, वर्गणा, औदारिक शरीर आदि की