________________
69
लोक-स्वरूप एवं जीव-विवेचन (1)
कर्मभूमि क्षेत्र में गर्भज मनुष्य म्लेच्छ और आर्य दो प्रकार के होते हैं- ‘म्लेच्छा आर्या इति द्वेधा मनुजाः कर्मभूमिजाः।”
कर्मभूमि में उत्पन्न मनुष्य
म्लेच्छ
|
आर्य ।
शक यवन
मुरुंड
शबर
समृद्धिशाली अर्हत् चक्रवर्ती बलदेव वासुदेव विद्याधर चारण
समृद्धिरहित क्षेत्र आर्य जाति आर्य कुल आर्य कर्म आर्य शिल्प आर्य ज्ञान आर्य भाषा आर्य चारित्र आर्य दर्शन आर्य
3. देव- लोकप्रकाशकार चार प्रकार के देवों का वर्णन करते हैं"- १. भवनपति २. व्यन्तर ३. ज्योतिषी ४. वैमानिका भवनपति देव- भवनों के स्वामी भवनपति होते हैं। भवनपति देव नरकक्षेत्र में निवास करते हैं और ये दस तरह के होते हैं- १. असुरकुमार २. नागकुमार ३. सुवर्णकुमार ४. विद्युतकुमार ५. अग्निकुमार ६. द्वीपकुमार ७. समुद्रकुमार ८. दिग्कुमार ६. वायुकुमार १०. मेघकुमार। प्रथम असुरकुमार पन्द्रह भेद वाले होते हैं जिन्हें परमाधामी देव भी कहा जाता हैं।" व्यन्तर देव- 'वनान्तरे चरन्तीति वानमन्तरा' अर्थात् वनान्तर (पर्वत की गुफाओं) में रहने वाले पंचेन्द्रिय जीव वानमन्तर देव होते हैं। -.....
___प्रायः शैलकन्दरादौ यच्चरन्ति वनान्तरे।
ततः पृषोदरादित्वात् एते स्युः वानमन्तराः ।।"" लोकप्रकाशकार के अनुसार चक्रवर्ती आदि के सेवक के समान आराधना आदि करने वाले, मनुष्य से बहुत कम अन्तर वाले देव भी व्यन्तर देव कहलाते हैं।