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जीव-विवेचन (2)
| (ब) देव का कृत्रिम वैक्रिय शरीर
से
| एक लाख योजन कुछ अधिक
२६ । (अ) नारक का वैक्रिय शरीर
| (ब) नारक का कृत्रिम वैक्रिय शरीर"
| पाँच सौ धनुष एक हजार धनुष
लोकप्रकाशकार ने एकेन्द्रिय जीवों में वनस्पतिकाय जीवों की अवगाहना सम्बन्धी विशिष्ट चर्चा की है। प्रत्येक वनस्पतिकाय का शरीर जघन्यतः एक अंगुल के असंख्यात भाग के समान होता है और उत्कृष्ट हजार योजन से कुछ अधिक होता है। उत्सेधांगुल के माप से सहन योजन गहरे जलाशय में उत्पन्न होने वाले कमल, लता आदि की अपेक्षा से प्रत्येक वनस्पतिकाय का उत्कृष्ट अंगमान हजार योजन है।"
शालि आदि धान्य जाति के वृक्ष के मूल, कंद, स्कन्ध, छिलके, साल, प्रवाल और पत्र इन सातों की अवगाहना पृथक्त्व धनुष प्रमाण होती है और उनके बीज, पुष्प और फल की अवगाहना पृथक्त्व अंगुल प्रमाण होती है।
तालादि वृक्ष के मूल, कंद और किसलय की अवगाहना उत्कृष्ट पृथक्त्व धनुष है, पत्तों की अवगाहना भी पृथक्त्व धनुष है और पुष्प की पृथक्त्व कर प्रमाण होती है।"
इन्हीं वृक्षों के स्कन्ध, शाखा और छिलके की अवगाहना पृथक्त्व गव्यूत प्रमाण है और फल तथा बीज की अवगाहना पृथक्त्व अंगुल प्रमाण है।*
एक बीज वाले और बहु बीज वाले वृक्षों के मूलादि दस भागों की अवगाहना ताल आदि वृक्ष के भागों के समान है तथा गुच्छ और गुल्म की अवगाहना शाल आदि वृक्षों के तुल्य होती है।" वल्ली के फल की अवगाहना पृथक्त्व धनुष की है एवं शेष मूलादि नौ भागों की अवगाहना ताल वृक्ष के समान है।
सूक्ष्म निगोद का देहमान एक अंगुल के असंख्यवें अंश के सदृश है और इससे सूक्ष्म वायुकाय, तेजस्काय, अप्काय और पृथ्वीकाय के जीवों का देहमान अनुक्रम से असंख्य-असंख्य गुणाधिक है। बादर वायुकाय आदि चार का देहमान अनुक्रम से असंख्य से असंख्य गुणा है तथा बादर निगोद का देहमान असंख्य गुणा है।" अपने अपने स्थान में ये सभी जीव एक अंगुल के असंख्यातवें भाग जितने हैं, परन्तु अंगुल का असंख्यातवां भाग अनेक प्रकार का होता है। अतः वह कई प्रकार से इनमें घटित होता है। इस प्रकार वनस्पतिकायिक जीवों के देहमान का सूक्ष्मतया विवेचन हुआ है।