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लोकप्रकाश का समीक्षात्मक अध्ययन तिर्यंच पंचेन्द्रिय और १ मनुष्य में जाते हैं। तेजस्कायिक व वायुकायिक जीवों में तिर्यंच गति और मनुष्य गति से जीव आते हैं और एक तिर्यंच गति में जाते हैं। दण्डक की अपेक्षा से औदारिक के दस दण्डक से जीव इनमें आते हैं तथा मनुष्य के एक दण्डक को छोड़कर औदारिक के शेष नौ दण्डकों में उत्पन्न होते हैं।" पृथ्वीकायिक जीव यदि जघन्य स्थिति प्राप्त कर पृथ्वीकाय, अप्काय, तेजस्काय
और वायुकाय में उत्पन्न होता है अथवा जघन्य स्थिति वाला पृथ्वीकायिक जीव, अप्काय, तेजस्काय वायुकाय और पृथ्वीकाय में उत्पन्न हो तो प्रत्येक के अन्दर उत्कृष्ट असंख्य जन्म और जघन्य दो जन्म करता है। इसी तरह अप्कायिक, तेजस्कायिक और वायुकायिक जीव भी चारों स्थावरों में जघन्य स्थिति प्राप्त कर अथवा स्वयं जघन्य स्थिति वाले होने पर जघन्य दो जन्म और उत्कृष्ट असंख्यात जन्म धारण करते हैं। पृथ्वीकायादि चार स्थावर जघन्य स्थिति प्राप्त कर यदि वनस्पतिकाय में उत्पन्न हों अथवा स्वयं जघन्य स्थिति वाले हों तब उत्कृष्ट असंख्यात जन्म धारण करते हैं तथा यदि वनस्पतिकाय का जीव पृथ्वीकाय आदि चार स्थावर में जघन्य स्थिति में उत्पन्न हों तो उत्कृष्ट असंख्य जन्म करता है। यदि वनस्पतिकाय का जीव वनस्पतिकाय में ही जघन्य स्थिति में उत्पन्न हो तो उत्कृष्ट अनन्त जन्म करता है। जघन्य स्थिति वाले पृथ्वीकाय आदि पांचो स्थावर के जीव यदि विकलेन्द्रिय में जघन्य स्थिति प्राप्त कर उत्पन्न हों तो उत्कृष्ट संख्यात जन्म करते हैं तथा यदि विकलेन्द्रिय जीव पांचों स्थावर में जघन्य स्थिति में उत्पन्न हो तब उत्कृष्ट संख्यात जन्म धारण करते हैं। यदि विकलेन्द्रिय जीव विकलेन्द्रिय में परस्पर जघन्य स्थिति में उत्पन्न होते हैं तब भी संख्यात जन्म करते हैं।
____ उत्कृष्ट-उत्कृष्ट, उत्कृष्ट-जघन्य, जघन्य-उत्कृष्ट और जघन्य-जघन्य आयु की इस चतुर्भगी के उत्कृष्ट आयुष्य वाले तीन विभागों में पृथ्वीकाय, अप्काय, तेजस्काय, वायुकाय, वनस्पतिकाय और तीन विकलेन्द्रिय जघन्य दो जन्म और उत्कृष्ट आठ जन्म करते हैं। यथा उत्कृष्ट आयुष्य वाला पृथ्वीकायिक उत्कृष्ट आयुष्य वाले अप्काय में, उत्कृष्ट आयुष्य वाला पृथ्वीकायिक जघन्य आयुष्य वाले अप्काय में और जघन्य आयुष्य वाला पृथ्वीकायिक उत्कृष्ट आयुष्य वाले अप्काय में उत्पन्न होता है तब एकान्तर में चार बार पृथ्वीकाय में और चार बार अप्काय में होकर आठ जन्म करता है। नौवें जन्म में वह जीव अवश्य अन्य पर्याय तेजस्काय या वायुकाय आदि ग्रहण करता है। इसी तरह शेष स्थावर और विकलेन्द्रिय आठ जन्म करते हैं।'
युगलिक को छोड़कर सन्नी मनुष्य तथा तिर्यंच व असंज्ञी तिर्यंच जघन्य और उत्कृष्ट आयु से होने वाली किसी भी चतुर्भगी में परस्पर उत्पन्न होने पर उत्कृष्ट आठ जन्म और जघन्य दो जन्म करते हैं। नौवें जन्म में वह निश्चय ही अपनी स्वयं की पर्याय को छोड़कर अन्य पर्याय को ग्रहण