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काललोक
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मरण करके पुनः उस प्रदेश के समीपवर्ती दूसरे प्रदेश में मरता है, पुनः उसके निकटवर्ती तीसरे प्रदेश में मरता है। इस प्रकार अनन्तर अनन्तर प्रदेशों में क्रमशः मरण करने में जितना काल लगता है वह सूक्ष्मक्षेत्र पुद्गलपरावर्तन कहलाता है।
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दोनों क्षेत्रपुद्गलपरावत में केवल इतना अन्तर है कि बादर में क्रम का विचार नहीं किया जाता। यहाँ क्रम से अथवा बिना क्रम से समस्त प्रदेशों में मरण कर लेना ही पर्याप्त समझा जाता है। किन्तु सूक्ष्म में समस्त प्रदेशों में क्रमपूर्वक किए गए मरण की ही गणना की जाती है। इससे यह स्पष्ट है कि बादर से सूक्ष्म में समय अधिक लगता है।
5. बादरकालपुद्गलपरावर्त - एक जीव जितने काल में अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी काल के सभी समयों में क्रम अथवा अपक्रम से मरण कर लेता है वह काल बादरकालपुद्गलपरावर्त कहलाता है
कालचक्रस्य समयैर्निखिलैर्निरनुक्रमं ।
मरणेनांगिना स्पृष्टै कालतो बादरो भवेत् । । "
6. सूक्ष्मकालपुद्गलपरावर्त - कोई जीव किसी अवसर्पिणीकाल के प्रथम समय में मरता है, पुनः उसके दूसरे समय में मरता है, पुनः तीसरे समय में मरता है। इस प्रकार क्रमशः अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी काल के सब समयों में मरण करने में जितना काल लगता है उसे सूक्ष्मकालपुद्गलपरावर्त कहते हैं।
कालचक्रस्य कस्यापि म्रियते प्रथमक्षणे । अन्यस्य कालचक्रस्य द्वितीयसमयेऽसुमान् ।। तृतीयस्य पुनः कालचक्रस्यैव तृतीयके । समये म्रियते दैवात्तदैवायुक्षये सति । । कालचक्रस्य समयैः सर्वैरेवं यथाक्रमं । मरणेनांगिना स्पृष्टै सूक्ष्मः स्यादेष कालतः ।।
7. बादरभावपुद्गलपरावर्त - अनुभाग बंधस्थानों में से एक-एक अनुभाग बंधस्थान में क्रम अथवा अक्रम से मरने में जीव को जितना काल लगता है वह बादर - भावपुद्गलपरावर्त कहलाता है। अनुभाग का अर्थ है- पुद्गलों का रसबंध अर्थात् कषाय युक्त किसी एक अध्यवसाय के पुद्गलों का एक समय में किसी निश्चित परिमाण में बंधना अनुभाग बंध कहलाता है। इन अनुभागों में जीव का रुकना अनुभागबंध स्थान कहलाता है। ये अनुभाग बंध के स्थान असंख्यातलोकाकाश के प्रदेशों की संख्या के बराबर होते हैं।
8. सूक्ष्मभावपुद्गलपरावर्त - सबसे जघन्य अनुभागबंधस्थान में वर्तमान में कोई जीव मरता