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भावलोक
और पारिणामिक भाव से जीवत्व आदि होते हैं। 4. चतुःसंयोगी- औदयिक-औपशमिक-क्षायोपशमिक एवं पारिणामिक भाव चारों गतियों में होता है। औपशमिक भाव से सम्यक्त्व प्राप्त होता है। क्षायोपशमिक से इन्द्रियादि, औदयिक भाव से चारों गतियाँ और पारिणामिक भावों से जीवत्वादि होते हैं।" 5. चतुःसंयोगी- औदयिक-क्षायिक-क्षायोपशमिक और पारिणामिक भाव चारों गतियों में होता है। क्षायिक भाव से सम्यक्त्व की प्राप्ति, क्षायोपशमिक भाव से इन्द्रियादि, औदयिक भाव से चार गति
और पारिणामिक भाव से जीवत्वादि होते हैं।२६ 6. पंचसंयोगी- औपशमिक- क्षायिक-क्षायोपशमिक-औदयिक और पारिणामिक भाव क्षायिकसम्यक्त्वी उपशम श्रेणी करने वाले मनुष्य में होता है। क्षायिक भाव से सम्यक्त्व होता है, मोहनीय कर्म का उपशम करने से उपशम भाव का चारित्र होता है, औदयिकी मनुष्य गति, क्षायोपशमिकी इन्द्रिय और जीवत्व एवं भव्यत्व पारिणामिक भाव की प्राप्ति होती है। इस प्रकार से पंचसंयोगी का एक विभाग संभव होता है।"
सान्निपातिक भाव के इन छह विभागों में से प्रथम विभाग सिद्ध जीव में होता है, दूसरा विभाग केवली जीव में होता है, तीसरा, चौथा एवं पंचम विभाग चारों गतियों में होता है तथा षष्ठ विभाग क्षायिक-सम्यक्त्वी उपशम श्रेणी प्रारम्भ करने वाले मनुष्य को होता है, इस प्रकार छह विभागों के कुल १+१+४+४+४+१=१५ भेद कहे जाते हैं।२८ कर्मा से सम्बद्ध विभिन्न भाव
ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय इन तीन कमों के क्षयादि से चार भाव प्रकट होते हैं, औपशमिक भाव प्रकट नहीं होता। ज्ञानावरण और दर्शनावरण के भेद केवलज्ञानावरण एवं केवलदर्शनावरण का क्षायोपशमिक भाव संभव नहीं है, मात्र क्षायिक भाव संभव है। अतः इस अपेक्षा से इन दो कर्मों के तीन अथवा चार भाव होते हैं। मोहनीय कर्म के क्षयादि से पाँचों भाव होते हैं। औपशमिक भाव का सम्बन्ध मात्र मोहकर्म से है। वेदनीय, आयु, नाम और गोत्र इन चार कर्मों के क्षयादि से पारिणामिक, क्षायिक और औदयिक ये तीन भाव होते हैं। अन्तरायकर्म के क्षयादि से औपशमिक को छोड़कर चार भाव प्रकट होते हैं। २६ | कर्म ज्ञानावरण | दर्शनावरण | वेदनीय | मोहनीय | आयुष्य | नाम गोत्र अन्तराय | | भाव ४/ ३४ /
३ ३ ५ ३ ३ ३ ४ ।