Book Title: Lokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Hemlata Jain
Publisher: L D Institute of Indology
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भावलोक
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३३. लोकप्रकाश, 36.97-98 ३४. लोकप्रकाश, 36.99-101 ३५. लोकप्रकाश, 36.102-104 ३६. लोकप्रकाश, 36.102, 105-106 ३७. लोकप्रकाश, 36.107-109 ३८. "एतेषु च षट्षु मध्ये एकस्त्रिकसंयोगो, द्वौ चतुष्कयोगावित्येते त्रयोऽपि प्रत्येकं चतसृष्वपि गतिषु
संभवतीति निर्णीतमिति गतिचतुष्टयभेदात्ते किल द्वादश वक्ष्यते। ये तु शेषा द्विकत्रिक पंचकयोगलक्षणास्त्रयो भंगाः सिद्धकेवल्युपशांतमोहानां यथाक्रमं निर्णीतास्ते च यथोक्तैकस्थानसंभवित्वात्त्रय एवेत्यनया विवक्षया सान्निपातिको भावः स्थानान्तरे पंचदशविध उक्तो द्रष्टव्यः यदाह अविरुद्धसन्निवाइय भेया एते पणरसत्ति।"-लोकप्रकाश, 36.94 की व्याख्या से
उद्धृत। ३६. लोकप्रकाश, 36.139-141 ४०. उपशमोऽत्रानुदयावस्था भस्मावृत्ताग्निवत् ।
स मोहनीय एव स्यान्न जात्यन्येषु कर्म च।। सर्वोपशम एवायं विज्ञेयो न तु देशतः ।
यद्देशोपशमस्तु स्यादन्येषामपि कर्मणां ।। -लोकप्रकाश, 36.107-109 ४१. 'चतुर्णांघातिनामेव क्षयोपशम इष्यते। -लोकप्रकाश, 36.41 ४२. कर्मग्रन्थ भाग 4, गाथा 66, पृष्ठ 330-331 ४३. लोकप्रकाश, 36.142-143 --४४. लोकप्रकाश, 36.144 ४५. लोकप्रकाश, 36.158-159 ४६. लोकप्रकाश, 36.148-151 ४७. लोकप्रकाश, 36.156-157 ४८. लोकप्रकाश, 36.152-154 ४६. लोकप्रकाश, 36.155 ५०. लोकप्रकाश, 36.156-157 ५१. लोकप्रकाश, 36.158-160 ५२. लोकप्रकाश, 36.196 ५३. लोकप्रकाश, 36.201-202 ५४. लोकप्रकाश, 36.174 ५५. लोकप्रकाश, 36.175 ५६. लोकप्रकाश, 36.176-177 ५७. लोकप्रकाश, 36.178 ५८. एकादशद्वादशयोर्गुणस्थानकयोरमी।
विना क्षायोपशमिकं चारित्रंद्वादशोदिताः।।-लोकप्रकाश, 36.179 ५६. लोकप्रकाश, 36.181 ६०. लोकप्रकाश, 36.183 ६१. लोकप्रकाश, 36.184-185 ६२. लोकप्रकाश, 36.186-187 ६३. लोकप्रकाश, 36.188 ६४. लोकप्रकाश, 36.189 ६५. लोकप्रकाश, 36.190 ६६. लोकप्रकाश, 36.191-192

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