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भावलोक कुल बारह औदयिक भेद सातवें गुणस्थान में होते हैं। ___आठवें और नौवें गुणस्थान में औदयिक भाव के दस भेद- शुक्ल लेश्या, मनुष्यगति, असिद्धत्व, तीन वेद और चार कषाय होते हैं।"
दसवें गुणस्थान में एक मनुष्यगति, असिद्धत्व, शुक्ल लेश्या और संज्वलन लोभ ये चार औदयिक भाव होते हैं। ___ग्यारहवें, बारहवें और तेरहवें गुणस्थान में लोभ को छोड़कर शेष शुक्ललेश्या, मनुष्यगति और असिद्धत्व ये तीन औदयिक भाव होते हैं। चौदहवें गुणस्थान में मनुष्य गति और असिद्धत्व ये दो औदयिक भाव होते हैं। ६८ 5. पारिणामिक भाव- मिथ्यादृष्टि गुणस्थान में अभव्यत्व, भव्यत्व तथा जीवत्व पारिणामिक के तीनों भेद होते हैं। द्वितीय गुणस्थान से लेकर क्षीणमोह नामक बारहवें गुणस्थान तक पारिणामिक भाव के जीवत्व और भव्यत्व दो भेद होते हैं। अन्तिम दो गुणस्थानों में एक जीवत्व नामक पारिणामिक भेद ही रहता है। सिद्धावस्था सुनिश्चित हो जाने से अन्तिम तेरहवें और चौदहवें इन दो गुणस्थानों में भव्यत्व भेद की गणना नहीं की गई है।" 6. सान्निपातिक भाव-चौदह गुणस्थानों में अनेक प्रकार के सान्निपातिक भाव होते हैं। चौदह गुणस्थानों में मूल पाँच भावों के जितने उत्तर भेद होते हैं उन सभी का योग करने पर सान्निपातिक भाव के उत्तर भेदों की संख्या आ जाती है।
मिथ्यादृष्टि गुणस्थान में औदयिक भाव के इक्कीस, क्षायोपशमिक भाव के दस और पारिणामिक भाव के तीन भेद होते हैं। इस तरह कुल चौंतीस भेद सान्निपातिक भाव के हैं।
सास्वादन गुणस्थान में क्षायोपशमिक भाव के दस भेद, औदयिक भाव के उन्नीस और पारिणामिक भाव के दो भेद ये कुल १०+२०+२ =३२ भेद सान्निपातिक भाव के हैं।
मिश्र गुणस्थान में क्षायोपशमिक के बारह, औदयिक के बीस और पारिणामिक के दो कुल १२+१६+२ =३३ भेद सान्निपातिक भाव के होते हैं।
इस प्रकार चौथे गुणस्थान में पैंतीस, पाँचवें गुणस्थान में चौंतीस, प्रमत्त गुणस्थान में तैंतीस, अप्रमत्त गुणस्थान में बीस, आठवें गुणस्थान में सत्ताईस, नौवें में अट्ठाईस, दसवें सूक्ष्मसंपराय में बाईस, उपशांतमोहनीय ग्यारहवें गुणस्थान में बीस, क्षीणमोहनीय में उन्नीस, सयोगी केवली गुणस्थान में तेरह और चौदहवें गुणस्थान में बारह भेद सान्निपातिक भाव के होते हैं।