Book Title: Lokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Hemlata Jain
Publisher: L D Institute of Indology

View full book text
Previous | Next

Page 402
________________ भावलोक 373 अप्रमत्त ८ अपूर्वकरण/निवृत्तिबादर | अनिवृत्तिबादर सूक्ष्म संपराय उपशान्त मोहनीय १२ | क्षीण मोहनीय १३ सयोगी केवली | १४ | अयोगी केवली औपशमिक/क्षायिक, क्षायोपशमिक, औदयिक एवं पारिणामिक (४) | औपशमिक/क्षायिक, क्षायोपशमिक, औदयिक एवं पारिणामिक (४) । औपशमिक/क्षायिक, क्षायोपशमिक, औदयिक एवं पारिणामिक (४) । औपशमिक/क्षायिक, क्षायोपशमिक, औदयिक एवं पारिणामिक (४) । औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक, औदयिक एवं पारिणामिक (५) औपशमिक के अतिरिक्त चार भाव (४) क्षायिक, औदयिक एवं पारिणामिक क्षायिक, औदयिक एवं पारिणामिक ११ गुणस्थानों के मूलभावों के उत्तरभेद ___ कौनसे-कौनसे गुणस्थान में पाँच मूल भावों के कितने-कितने उत्तरभेद होते हैं, इसकी चर्चा भी लोकप्रकाशकार ३६वें सर्ग में करते हैं। उत्तरभेदों का विवरण इस प्रकार है1. औपशमिक भाव- औपशमिक भाव का सम्यक्त्व रूप भेद चतुर्थ अविरतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान, पंचम देशविरति गुणस्थान, षष्ठ प्रमत्तसंयत गुणस्थान, सप्तम अप्रमत्तसंयत गुणस्थान और अष्टम अपूर्वकरण गुणस्थान में होता है। औपशमिक भाव के सम्यक्त्व और चारित्र रूप दोनों भेद नौवें अनिवृत्तिबादर गुणस्थान, दसवें सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान और ग्यारहवें उपशान्तमोहनीय गुणस्थान में होते हैं। 2. क्षायिक भाव- क्षायिक भाव का क्षायिक समकित भेद चतुर्थ गुणस्थान से आरम्भ हो जाता है। जो (ग्यारहवें गुणस्थान को छोड़कर) बारहवें क्षीणमोहनीय गुणस्थान तक पाया जाता है। क्षीणमोहनीय गुणस्थान में क्षायिक भाव के क्षायिक सम्यक्त्व और क्षायिक चारित्र दोनों भेद होते हैं। अन्तिम दो गुणस्थान १३वें और १४वें में केवलज्ञान, केवलदर्शन और क्षायिक दानादि लब्धि होती 3. क्षायोपशमिक भाव- मिथ्यादृष्टि और सास्वादन गुणस्थान में क्षायोपशमिक भाव के दस भेद होते हैं- क्षायोपशमिक-दानादि पाँच लब्धियाँ, तीन अज्ञान (मतिअज्ञान, श्रुतअज्ञान एवं विभंगज्ञान) तथा चक्षुदर्शन और अचक्षुदर्शन होते हैं। मिश्र गुणस्थान में क्षायोपशमिक भाव के क्षायोपशमिक दानादि पाँच लब्धियाँ, तीन ज्ञान, तीन दर्शन और मिथ्यात्वसम्यक्त्व ये कुल बारह भेद होते हैं। इस तृतीय गुणस्थान में अज्ञान भी रहता है परन्तु ज्ञानांश की बहुलता की अपेक्षा से तीन ज्ञान कहे जाते हैं। अविरतसम्यग्दृष्टि नामक चतुर्थ गुणस्थान में क्षायोपशमिक भाव के बारह भेद मिश्र

Loading...

Page Navigation
1 ... 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422