Book Title: Lokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Hemlata Jain
Publisher: L D Institute of Indology

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Page 407
________________ लोकप्रकाश का समीक्षात्मक अध्ययन 378 तीन विभाग सादि सांत, अनादि-सांत और अनादि - अनन्त ही होते हैं। पारिणामिक भाव पुद्गल विषयक होने से सादि-सांत होते हैं क्योंकि द्वयणुकादि स्कन्ध की अपेक्षा पुद्गल पर्याय आदि और अन्त युक्त होता है। अतः इस दृष्टि से पारिणामिक भाव सादि-सांत है" और पुद्गलों का अन्त होने के कारण यह भाव सादि - अनन्त नहीं हो सकता है। M 'सिद्धे न भव्वे नो अभव्वे" कथन के अनुसार सिद्ध भव्य भी नहीं होते और अभव्य भी नहीं । क्योंकि सिद्ध बनने पर भव्यता भी स्वतः समाप्त हो जाती है। अतः इस दृष्टि से भव्यत्व के आश्रित पारिणामिक भाव अनादि सांत है। " षड्द्द्रव्यों में भाव औपशमिकादि छहों भाव जीव से सम्बन्धित होने के कारण जीवास्तिकाय में छहों भाव होते हैं। किन्तु ये छहों भाव जीव में एक साथ नहीं होते हैं। मुक्त जीवों में दो भाव होते हैं - क्षायिक और पारिणामिक। संसारी जीवों में कोई तीन भाव वाला, कोई चार भाव वाला, कोई पांच भाव वाला होता है, परन्तु दो भाव वाला कोई नहीं होता है। अजीव से सम्बन्धित दो ही भाव औदयिक और पारिणामिक हैं। धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय और कालद्रव्य इन चार में एक पारिणामिक भाव अनादि अनन्त स्थिति वाला होता है जीवेषु षडमी भावा यथासंभवमाहिताः । अजीवेषु त्वौदयिकपारिणामिकसंज्ञकौ । धर्माधर्माभ्रास्तिकाय कालेषु पारिणामिकः । एक एवानाद्यनंतो निर्दिष्टः श्रुतपारगैः । । धर्मास्तिकाय में गतिनिमित्तता, अधर्मास्तिकाय में स्थिरता निमित्तता, आकाशास्तिकाय में अवगाहन निमित्तता स्वभाव रूप पारिणामिक भाव होता है। कालद्रव्य में समय, आवलि आदि परिणाम रूप भाव अनादि अनन्त काल तक रहता है। पुद्गलास्तिकाय में औदयिक और पारिणामिक दोनों भाव होते हैं। जीव द्वारा अग्राह्य सूक्ष्म परमाणु रूप पुद्गल में मात्र पारिणामिक भाव है, औदयिक भाव नहीं । परन्तु जिन पुद्गलों के निमित्त से जीव में गति, शरीर, लेश्या आदि होते हैं उस अपेक्षा से पुद्गल में औदयिक भाव है तथा सब्जी, फल आदि के रूप में पुद्गलों को ग्रहण कर जीव द्वारा रक्त, वसा, मज्जा आदि में परिणमित करना पुद्गल द्रव्य का पारिणामिक भाव है। कर्मस्कन्धों में औदयिक और पारिणामिक दो भाव होते हैं । औपशमिक, क्षायिक एवं क्षायोपशमिक भावों में कर्मों का उपशम, क्षय एवं क्षयोपशम होता है जबकि औदयिक भाव सीधे कर्मों

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