Book Title: Lokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Hemlata Jain
Publisher: L D Institute of Indology

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Page 380
________________ काललोक 351 भारतीय दर्शनों से इसे वैशिष्ट्य प्रदान करता है। उपमा के आधार पर काल के निरूपण की यह विशिष्ट पद्धति है जो अन्यत्र दृष्टिगोचर नहीं होती। पुद्गलपरावर्तन का निरूपण तो अद्भुत है जिसके अनुसार एक पुद्गल का अनन्तकाल में सभी पर्यायों से गुजर जाने का ग्रहण होता है। पुद्गलपरावर्त के आठ प्रकार निरूपित हैं- बादर द्रव्यपुद्गलपरावर्त, सूक्ष्मद्रव्यपुद्गलपरावर्त, बादरक्षेत्रपुद्गलपरावर्त, सूक्ष्मक्षेत्रपुद्गलपरावर्त, बादरकालपुद्गलपरावर्त, सूक्ष्मकालपुद्गलपरावर्त, बादरभावपुद्गलपरावर्त और सूक्ष्मभाव पुद्गलपरावर्त। ११. उपाध्याय विनयविजय ने नालिका से लेकर संवत्सर प्रमाणकाल का निरूपण तोल और माप के आधार पर भी किया है। उदाहरण के लिए दो नालिकाओं का एक मुहूर्त होता है। तोल की अपेक्षा यह दो सौ पल प्रमाण और माप की अपेक्षा चार आढक प्रमाण होता है। १२.जैन दर्शन के अनुसार संवत्सर पाँच प्रकार के हैं- सूर्य संवत्सर, ऋतुसंवत्सर, चन्द्र संवत्सर, नक्षत्रसंवत्सर, अभिवर्धितसंवत्सर। पाँचों संवत्सर का एक युग होता है। बीस युगों का सौ वर्ष होता है। ८४ लाख वर्षों का एक पूर्वांग और ६४ लाख पूर्वांगों का एक पूर्व होता है। इसी प्रकार आगे भी शीर्षप्रहेलिका तक गणितीय संख्याओं का प्रयोग हुआ है। १३. जैनदर्शन में समय की जो गणना की गई है वह अत्यन्त सूक्ष्म है। जो आधुनिक विज्ञान के लिए भी एक चुनौती है। जैन दर्शन के अनुसार एक पलक झपकने में असंख्यात समय व्यतीत हो जाते हैं। संदर्भ १. वैशेषिक सूत्र.1.1.5 २. 'कालोऽमूर्तक्रियापरिच्छेदहेतुः।' -वाक्यपदीयम, कालसमुद्देश, कारिका 2, हेलाराजकृत प्रकाशव्याख्या योगसूत्र 3.52, व्यासभाष्य ४. उद्धृत- (अ) सन्मतितर्कप्रकरण 3.52, अभयदेवसूरि तत्त्वबोधविधायिनी टीका। (ब) शास्त्रवार्तासमुच्चय 2.54 (स) सूत्रकृतांग की शीलांकटीका। अथर्ववेद काण्ड 19, अध्याय 6, सूक्त 53-54 कालादुत्पद्यते सर्व कालादेव विपद्यते।। न कालनिरपेक्षो हि क्वचित्किंचिद्धि विद्यते।। शिवपुराण, वायुसंहिता, पूर्वभाग, श्लोक 1 ७. विष्णुपुराण, भाग 1, प्रथमांश, सृष्टिप्रक्रिया, पृष्ठ 9-11, नागप्रकाशन, दिल्ली ८. कालः स्वभावो नियतिर्यदृच्छा भूतानि योनिः पुरुष इति चिन्त्या। संयोगः एषां न त्वात्मभावादात्माऽप्यनीशः सुखदुःखहेतोः। श्वेताश्वेतरोपनिषद 1.2 ६. कालो हि कार्य प्रति निर्विशेषः।-महाभारत, शान्ति पर्व 25.6 महाभारत के शान्तिपर्व और अनुशासनपर्व में चर्चा भी उपलब्ध है। १०. प्रवचनसार, अ. 2, गाथा 46-47

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