Book Title: Lokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Hemlata Jain
Publisher: L D Institute of Indology
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काललोक
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पंचानामस्तिकायानां नान्यथा वर्तना भवेत्।।-नियमसार, अजीव अधिकार, गाथा 32 की टीका ४७. नियमसार, अजीव अधिकार, पृष्ठ सं. 68-69 ४८. षट्खण्डागम धवला पुसतक 4/1,5,1 पृष्ठ 317 ४६. तत्त्वार्थराजवार्तिक, 4.14 ५०. अभिधानराजेन्द्रकोष, भाग 3, पृष्ठ 470 ५१. 'कालो वर्तनमिति। -पंचाध्यायी 5.274, 471 ५२. वर्तनाहेतुरेषः स्यात् कुम्भकृच्चक्रमेव तत्।
पंचानामस्तिकायानां नान्यथा वर्तना भवेत।। -नियमसार अजीव अधिकार, गाथा 32 की टीका से
उद्धृत ५३. 'फास-रस-गंध-वण्णेहि विरहिदो अगुरुलहुगुणजुतो।
वट्टण लक्खण-कलियं, काल-सरूवं इमं होदि।। -तिलोयपण्णत्ती गाथा 281 ५४. कल्यन्ते संख्यायन्ते कर्म-भव-कायायुस्थितयोऽनेनेति कालशब्दव्युत्पत्तेः। कालः समय अद्धा
इत्येकोऽर्थः।-षटखण्डागम जीवस्थान, 1-5-1, पृष्ठ सं. 318 ५५. लोकप्रकाश, 28.6 ५६. प्रवचनसार, तत्त्वप्रदीपिका, गाथा 136 ५७. सोऽनन्तसमय:- तत्त्वार्थराजवार्तिक, 5.40 ५८. नियमसार, गाथा 34, पृष्ठ 72 ५६. (अ) गोम्मटसार जीवकाण्ड, गाथा 570
(ब) षट्खण्डागम धवला पुस्तक 4/1,5,1/ पृष्ठ 315 ६०. व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र, शतक 2, उद्देशक 10, सूत्र 1 ६१. अनुयोगद्वारसूत्र, 218 ६२. अभिधानराजेन्द्रकोश, भाग-1, पृष्ठ सं. 513 ६३. 'अभिधानराजेन्द्रकोश, भाग-1, पृष्ठ सं. 513 ६४. व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र, शतक 2, उद्देशक 10, सूत्र 7-8 ६५. तत्त्वार्थसूत्र 5.22 ६६. उत्तराध्ययन सूत्र 28.10 ६७. तत्त्वार्थश्लोकवार्तिकम् 5.22 ६८. लोकप्रकाश, 3.58 ६६. लोकप्रकाश, 28.8 ७०. (अ) लोकप्रकाश, 28.63
(ब) तत्त्वार्थराजवार्तिक 5.22 ७१. 'त्रिधा यद्वा परिणामस्तत्राद्यः स्यात्प्रयोगजः।
द्वितीयस्तु वैससिकस्तृतीयो मिश्रकः स्मृतः। -लोकप्रकाश, 28.64 ७२. लोकप्रकाश, 28.65 ७३. लोकप्रकाश, 28.66 ७४. लोकप्रकाश, 28.67 ७५. तत्त्वार्थराजवार्तिक, 5.22-- - ७६. लोकप्रकाश, 28.69 ७७. (अ) लोकप्रकाश, 28.9 ------ (ब) 'परिस्पन्दात्मको द्रव्यपर्यायः सम्प्रतीयते।
क्रियादेशान्तरप्राप्तिहेतुर्गत्यादि भेदभुत।।-तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 5.22.39 ७८. 'प्रयोगजात्मायोगोत्था विस्रसजा त्वजीवजा।
मिश्रा पुनस्तदुभयसंयोगजनिता मता।। --लोकप्रकाश, 28.71

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