Book Title: Lokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Hemlata Jain
Publisher: L D Institute of Indology

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Page 385
________________ 356 लोकप्रकाश का समीक्षात्मक अध्ययन १३६. लोकप्रकाश, 28.196 और 197 १३७. लोकप्रकाश, 28.201 और 202 १३८. लोकप्रकाश, 28.203 १३६. लोकप्रकाश, 28.204 से 208 १४०. लोकप्रकाश, 28.216 १४१. (अ) लोकप्रकाश, 28.246 (ब) तिलोयपण्णत्ति, 289 १४२. लोकप्रकाश, 28.247 से उद्धृत १४३. लोकप्रकाश, 28.282-288 १४४. लोकप्रकाश, 28.288 १४५. लोकप्रकाश में 'प्रावृट्' शब्द का प्रयोग वर्षा ऋतु के अर्थ में नहीं करके शिशिर ऋतु के अर्थ में किया गया प्रतीत होता है। १४६. लोकप्रकाश, 28.609-610 १४७. लोकप्रकाश, 28.290 १४८. लोकप्रकाश, 28.609 १४६. लोकप्रकाश, 28.509 १५०. लोकप्रकाश, 28.300 १५१. (अ) लोकप्रकाश, 29.1-12 (ब) अनुयोगद्वार सूत्र, सूत्र 267 १५२. लोकप्रकाश, 29.27 १५३. (अ) एतेषामथ पल्यानां दशभिः कोटिकोटिभिः' - लोकप्रकाश, 1.87 (ब) व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र, शतक 6, उद्देशक 7, सूत्र 7 १५४. व्याख्याप्रज्ञप्ति, शतक 11, उद्देशक 11, सूत्र 17 १५५. लोकप्रकाश, 29.42 १५६. लोकप्रकाश, 29.44 १५७. लोकप्रकाश, 29.45 १५८. लोकप्रकाश, 29.29-32 १५६. लोकप्रकाश, 39-42 १६०. वर्गणा का अर्थ है समानजातीय पुद्गलों का समूह १६१. सूक्ष्मतम अविभाज्य पुद्गल परमाणु' कहलाता है। १६२. (अ) लोकप्रकाश, 35.1-2 (ब) प्रवचनसारोद्धार, द्वार 162, गाथा 1040 (स) कर्मग्रन्थ, भाग पंचम, प्रदेशबन्ध द्वार, गाथा 86 १६३. लोकप्रकाश, 35.4 १६४. लोकप्रकाश, 35.7-11 १६५. जो वर्गणाएँ अल्प परमाणु वाली होने के कारण जीव के द्वारा ग्रहण नहीं की जाती हैं, वे अग्रहणयोग्य वर्गणा होती है और निश्चित परमाणु वाली वर्गणा जिसे जीव ग्रहण करता है, वह ग्रहणयोग्यवर्गणा कहलाती है। १६६. लोकप्रकाश, 35.3 १६७. (अ) लोकप्रकाश, 35.45-47 (ब) प्रवचनसारोद्धार, द्वार 162, गाथा 1041 १६८. (अ) लोकप्रकाश, 35.48-49 (ब) प्रवचनसारोद्धार, द्वार 162, गाथा 1043

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