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लोकप्रकाश का समीक्षात्मक अध्ययन मेरुपर्वत स्थित है। उपाध्याय विनयविजय ने विभिन्न उपमाओं से मेरुपर्वत को उपमित कर उसके स्वरूप का निरूपण किया है। यह मेरुपर्वत पूर्वविदेह और पश्चिम विदेह के मध्य रत्नप्रभामय चक्र को नाभि में धारण किए हुए के समान है””, जगत् के पर्यायरूपी बर्तनों को बनाने में निमित्तभूत काल रूपी चक्र घुमाने के लिए दण्डे के समान है””, जम्बूद्वीप को मापने की इच्छा से मानदण्ड के रूप में खड़े हुए के समान है", पृथ्वी रूपी स्नेहमयी माता के द्वारा कौतुक से अपनी गौद में खड़े किए हुए शिशु के समान है", चारों ओर घूमते हुए चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारे रूपी बैलों के बंधन स्वरूप ऊँचे स्तम्भ के समान है", गजदंत रूपी दांत वाले नीलवान और निषध के मध्य सीमा स्तम्भ के समान है "", दिशाओं रूपी सुन्दर पत्तों वाले तिरछे लोक रूपी कमल के पीत बीजकोश के समान है””, लवण समुद्र में स्थित जम्बूद्वीप रूपी नौका में श्वेत पट के समान कूपस्तम्भ है", भद्रशालवन रूपी शय्या पर खड़े होकर सेवक सदृश अन्य पर्वतों पर अपलक दृष्टि रखते हुए स्वामी के समान " तथा मनुष्य क्षेत्र रूपी कड़ाही में विविध पदार्थों की खीर बनाने के लिए रसोइये के द्वारा खड़े किए कड़छी के समान है। इस प्रकार रचनाकार विनयविजय ने मेरुपर्वत वर्णन में अपनी काव्यकला को प्रकट किया है।
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यह मेरुपर्वत पद्मवेदिका से घिरा हुआ अनेक रत्नों की कान्ति से प्रकाशमान, पृथ्वी पर ६६ हजार योजन ऊँचा और एक हजार योजन अन्दर स्थित है। मन्दर, मेरु, सुदर्शन, स्वयंप्रभ, मनोरम, गिरिराज, रत्नोच्चय, शिलोच्चय, लोकमध्य, लोकनाभि, सूर्यावर्त, अस्तद्गिादि, सूर्यावरण, अवतंसक और नगोत्तम ये सोलह नाम भी मेरुपर्वत के प्रसिद्ध हैं । " इन सोलह नामों में 'मन्दर' नाम मुख्य रूप से लोकप्रसिद्ध अधिक है।
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धातकी खण्ड
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धातकी नामक वृक्ष से सदा सुशोभित होने वाला द्वीप घातकी खंड के नाम से प्रसिद्ध है। इस द्वीप की चक्रवाल- गोलाकार चौड़ाई चार लाख योजन है । इस द्वीप के मध्य भाग में दक्षिण दिशा और उत्तर दिशा में पाँच सौ योजन ऊँचे दो इषुकार पर्वत हैं। ये एक हजार योजन चौड़े और चार लाख योजन लम्बे हैं। अत्यधिक लम्बाई होने से कालोदधि और लवण समुद्र को परस्पर एकत्रित करने के लिए मानो दोनों पर्वतों ने अपने हाथ प्रसारित किए हों ऐसा लगता है । २३. इन दो इषुकार पर्वतों से यह द्वीप पूर्वार्ध और पश्चिमार्ध दो भागों में विभक्त हो जाता है । जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत से पूर्व में घातकी खण्ड का अर्ध भाग पूर्वार्ध और पश्चिम दिशा का अर्धभाग पश्चिमार्ध कहलाता है।' दोनों अर्ध विभागों के मध्य में एक-एक मेरुपर्वत है।
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