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लोकप्रकाश का समीक्षात्मक अध्ययन
एकैकश्च भवेद् द्वेद्या सूक्ष्मबादरभेदतः । अष्टानामप्यथैतेषां स्वरूपं किंचिदुच्यते । । *
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पुद्गलपरावर्त को समझने के लिए पहले वर्गणाओं का ज्ञान आवश्यक है। अतः लोकप्रकाशकार ने वर्गणाओं का भी उल्लेख किया है।
समानजातीय पुद्गलों के समूह को वर्गणा कहते हैं। सजातीय पुद्गलानां समूहो वर्गणोच्यते”६३ ये वर्गणाएँ अनन्त प्रकार की होती हैं। समस्त लोकाकाश में एक-एक परमाणु वाले एकाकी परमाणुओं की एक वर्गणा, दो प्रदेशों वाले परमाणु स्कन्ध की दूसरी वर्गणा, तीन प्रदेशों वाले परमाणु स्कन्ध की तीसरी वर्गणा होती है। इस प्रकार एक-एक परमाणु बढ़ते संख्यात प्रदेश वाले परमाणु स्कन्धों की संख्याताणुवर्गणा, असंख्यात प्रदेश वाले परमाणु स्कन्धों की असंख्याताणुवर्गणा, अनन्त प्रदेशी परमाणु स्कन्धों की अनन्ताणुवर्गणा होती है।
एकाकिनः संति लोके येऽनंताः परमाणवः । एकाकित्वेन तुल्यानां तेषामेकात्र वर्गणा । । द्वयणुकानामनंतानां द्वितीया वर्गणा भवेत् । त्र्यणुकानामनंतानां तृतीया किल वर्गणा । । यावदेवमनंतानां गयप्रदेशशालिनां । स्कन्धानां वर्गणा गण्या द्वयणुकत्वादिजातिभिः । । असंख्येयप्रदेशानामप्येकैकाणुवृद्धितः ।
असंख्येया वर्गणाः स्युः प्राग्वज्जातिविवक्षया । तथानंताणुजातानां स्कन्धानामपि वर्गणाः । भवन्त्येकैकाणुवृद्धयाऽनंता इति जिनैः स्मृतं । ।"
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अष्टपुद्गलवर्गणाएँ - अनन्त परमाणुओं से मिलकर बने होने पर भी इन अनन्ताणुवर्गणाओं में से कुछ वर्गणाएँ जीव के द्वारा ग्रहण योग्य और कुछ अग्रहणयोग्य होती हैं।"" इन पौद्गलिक वर्गणाओं के आठ प्रकार हैं
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औदारिकवैक्रियांगाहारकतैजसोचिताः ।
भाषोच्छ्वासमनः कर्मयोग्याश्चेत्यष्ट वर्गणाः ।।'
आठ वर्गणाएँ- १. औदारिक २. वैक्रिय ३. आहारक ४. तैजस ५. भाषा ६. श्वासोच्छ्वास ७. मन और ८. कार्मण। इन आठों वर्गणाओं में प्रत्येक ग्रहणयोग्य और अग्रहणयोग्य होती है, अतः कुल मिलाकर वर्गणा के सोलह भेद हो जाते हैं।
निश्चित प्रमाण परमाणु वाले स्कन्ध को जीव ग्रहण करके जब औदारिक शरीर रूप में परिणमाता है तब उसे 'औदारिक वर्गणा' कहते हैं। इसी प्रकार वैक्रिय शरीर में परिणमन