Book Title: Lokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Hemlata Jain
Publisher: L D Institute of Indology

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Page 372
________________ काललोक 343 ३५वें सर्ग में पुद्गलपरावर्तन का विस्तृत उल्लेख किया है। जीव अनादिकाल से इस संसार में परिभ्रमण कर रहा है। अब तक एक भी परमाणु१६१ ऐसा शेष नहीं रहा होगा जिसे जीव ने भोगा न हो, आकाश का एक भी प्रदेश ऐसा बाकी न होगा जिसमें यह न मरा हो, उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी काल का एक भी ऐसा समय शेष नहीं रहा होगा जिसमें यह मृत्यु को प्राप्त न हुआ हो और ऐसा एक भी कषाय स्थान बाकी नहीं है जिसमें यह दिवंगत न हुआ हो। प्रत्युत उन परमाणु, प्रदेश, समय और कषाय स्थानों को यह अनेक बार अपना चुका है। इसी को दृष्टि में रखकर पुद्गलपरावर्तन को द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव इन चार विभागों में विभाजित कर काल का विभाग किया जाता है। जो पुद्गलपरावर्त जितने काल में होता है, उतने काल के परिमाण को उस-उस पुद्गलपरावर्त के नाम से पुकारा जाता है। यद्यपि द्रव्यपुद्गलपरावर्तन के सिवाय अन्य किसी भी परावर्तन में पुद्गल का परावर्तन नहीं होता, क्योंकि क्षेत्र पुद्गल परावर्तन में क्षेत्र का, कालपुद्गलपरावर्तन में काल का और भावपुद्गलपरावर्तन में भाव का परावर्तन होता है, किन्तु एक पुद्गलपरावर्तन का काल अनन्त उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी काल के बराबर होता है, जो क्षेत्र, काल तथा भाव पुद्गलपरावर्त में भी समान रूप से लागू होता है। अतः इन परावर्तनों की भी पुद्गलपरावर्तन संज्ञा की गई है। उपाध्याय विनयविजय का मानना है कि शब्द का अर्थ-बोध दो निमित्तों से होता हैव्युत्पत्ति निमित्त से और प्रवृत्ति निमित्त से। यथा 'गौ' शब्द का व्युत्पत्ति निमित्त है 'गमन करना' और प्रवृत्ति निमित्त है खुर, ककुद, पूँछ व गलकम्बल युक्त पिण्ड। अतः बैठी हुई गाय को 'गौ' कहने में कोई विरोध नहीं आता, क्योंकि उसमें 'गो' शब्द का प्रवृत्ति निमित्त घटित हो रहा है और गज, अश्व आदि में गमन क्रिया होते हुए भी गलकम्बल, पूँछ, ककुदादि प्रवृत्ति निमित्त नहीं होने से उन्हें 'गौ' शब्द से पुकारा नहीं जाता। इसी प्रकार पुद्गल परमाणुओं का औदारिक आदि वर्गणा के रूप में विवक्षित शरीर रूप से अथवा सम्पूर्ण रूप से ग्रहण कर छोड़ने में जितना काल लगता है वह काल पुद्गलपरावर्त है। यह पुद्गलपरावर्त का व्युत्पत्ति निमित्त है। अनन्त उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी प्रमाणकाल पुद्गलपरावर्त शब्द का प्रवृत्तिनिमित्त है। अतः क्षेत्र, काल और भाव पुद्गलपरावर्तनों में पुद्गलपरावर्त शब्द का व्युत्पत्ति निमित्त घटित न होने पर भी प्रवृत्तिनिमित्त घटित होता है इसलिए इन्हें पुद्गलपरावर्त कहने में कोई विरोध नहीं आता। द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की दृष्टि से पुद्गलपरावर्त चार प्रकार का है। प्रत्येक के बादर और सूक्ष्म दो-दो भेद होते हैं। इस प्रकार पुद्गलपरावर्त के कुल आठ भेद होते हैं स्यात्पुद्गलपरावर्त्तः कालचक्रैरनंतकैः । द्रव्यक्षेत्रकालभावभेदात्स च चतुर्विध ।।

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