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काललोक उच्चारण करना आवश्यकी सामाचारी कहलाती है। इसके पश्चात् साधु को अनावश्यक कार्य नहीं करने चाहिए। नैषेधिकी- आवश्यक कार्य से निवृत्त होकर उपाश्रय में प्रवेश करने पर 'निसीहिया' शब्द का उच्चारण करना नैषेधिकी सामाचारी कहलाती है।"
आपृच्छना- आपृच्छना किसी भी कार्य में प्रवृत्त होने से पूर्व गुरु से आज्ञा लेना आवश्यक है। उपाध्याय विनयविजय के अनुसार कार्य करने की इच्छा होने पर गुरु से आज्ञा लेना आपृच्छना है'आपृच्छना स्यादापृच्छा गुरोः कार्य चिकीर्षिते।”६ प्रतिपृच्छना-गुरु द्वारा पूर्वनिषिद्ध कार्य को करना आवश्यक है, अतः पुनः गुरु से उसे करने के लिए पूछना अथवा आज्ञा लेना प्रतिपृच्छना सामाचारी है। विनयविजय के अनुसार कार्य की इच्छा उत्पन्न होने के पश्चात् कार्य करने के लिए पुनः गुरु से पूछना प्रतिपृच्छना कहलाता है- 'प्रतिपृच्छा कार्यकाले भूयो यत्पृच्छनं गुरोः। छन्दना- स्वयं द्वारा लाए हुए आहार में लाभ लेने के लिए गुरु और अन्य साधुओं से प्रार्थना करना छन्दना सामाचारी है।" निमंत्रणा- आहार लाने के लिए जाते समय गुरु और अन्य साधुओं से आहार लाने के विषय में पूछना निमंत्रणा सामाचारी होती है।" उपसम्पदा- ज्ञान, दर्शन, चारित्र, सेवा आदि कारणों से अन्य गच्छ के आचार्य आदि के समीप रहना उपसम्पदा सामाचारी है। २० (2) यथायुष्कउपक्रमकाल
सोपक्रमआयुष्य वाले जीव के द्वारा बहुत काल तक भोगने योग्य आयुष्य को संक्षेप करके अल्पकाल में ही भोगने योग्य कर देना यथायुष्कउपक्रमकाल कहलाता है।
अनल्पकालवेद्यस्यायुषः संवर्तनेन यत्। अल्पकालोपभोग्यत्वं भवेत्सोपक्रमायुषां ।।
यथायुष्कोपक्रमाख्यः स कालः परीकीर्तितः ।।" तप, पुरुषार्थ आदि के द्वारा अनिकाचित कर्मों की स्थिति, रस आदि को कम करना और शुभ तथा अशुभ परिणामों के अनिकाचित पाप तथा पुण्यकर्मों का अपवर्तन करना उपक्रम है। इस प्रकार के उपक्रम से दीर्घ आयुष्य का संक्षेपण होता है अतः यह यथायुष्कउपक्रमकाल कहलाता है। 7.देशकाल
शुभ अथवा अशुभ कार्य को देखकर यह जान लेना कि उपर्युक्त समय किस कार्य के लिए