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लोकप्रकाश का समीक्षात्मक अध्ययन
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उचित है, वह देशकाल कहलाता है। ” धुएँ रहित गाँव को देखकर, कुएँ को स्त्री शून्य देखकर तथा घरों पर कौए को उड़ते हुए देखकर साधुओं द्वारा यह जान लिया जाता है कि भिक्षा काल हो गया है। यह देशकाल कहलाता है ।
8. कालकाल
कालधर्म को प्राप्त होने वाला काल अर्थात् मृत्यु का समय 'कालकाल' कहलाता है । यथा किसी वृद्ध के अत्यधिक अस्वस्थ अथवा हृदयाघात आने पर कहा जाता है कि इनका काल नजदीक आ गया है। अतः काल का आना ही 'कालकाल' कहलाता है।
यो यस्य मृत्युकालः स्यात् कालकालः स तस्य यत् । कालं गतो मृत इति गम्यते लोकरूढितः ।।
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9. प्रमाणकाल
काल का निश्चित माप निर्धारित कर गणना करना प्रमाणकाल कहलाता है । यथा काल की इकाईयों को समय, आवलिका, मुहूर्त, दिन-रात आदि में विभाजित करना प्रमाणकाल है। अद्धाकालस्यैव भेदः प्रमाणकाल उच्यते ।
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अहोरात्रादिको वक्ष्यमाण विस्तारवैभवः । । '
10. वर्णकाल
पाँच वर्णों (कृष्ण, नील, रक्त, पीत एवं श्वेत) में श्याम कान्ति वाला वर्ण 'वर्णकाल' होता है। अर्थात् काल का वर्ण श्याम वर्ण निश्चित किया गया है
पंचानामथ वर्णानां मध्ये सः श्यामलद्युतिः । सवर्णकालो विज्ञेयः सचिताचितरूपकः ।।२६
11. भावकाल
औदयिक, क्षायोपशमिक, क्षायिक, औपशमिक और पारिणामिक। इन पाँचों भावों की सादि, सान्त आदि विभागों की जो स्थिति होती है वह 'भावकाल' होता है
भवत्यौदयिकादीनां या भावपनामवस्थितिः ।
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सादिसांतादिभिर्भगैः भावकालः स उच्यते । । ”
प्रमाणकाल का विशेष स्वरूप
जीव और पुद्गल का पर्याय- परिणमन कालद्रव्य के बिना सिद्ध नहीं होता है। अतः निश्चयकाल रूप कालद्रव्य स्वीकार किया जाता है। जीव और पुद्गल का यह पर्याय- परिणमन लोक में व्यवहार काल से प्रकट होता है । व्यवहार काल का भिन्न-भिन्न इकाइयों अथवा मान विभाजन