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५. कृष्ण का अमरकंका नगरी मे जाना।
६. चन्द्र और सूर्य देवों का विमान सहित पृथ्वी पर उतरना ।
७. हरिवंश कुल की उत्पत्ति
८. चमर का उत्पात - चमरेन्द्र का सौधर्मकल्प में जाना ।
६. एक सौ आठ सिद्ध - एक समय में एक साथ एक सौ आठ जीवों का सिद्ध होना।
१०.असंयमी की पूजा।
जो घटनाएँ सामान्य रूप से सदा नहीं होती, किन्तु किसी विशेष कारण से चिरकाल के पश्चात् होती हैं, उन्हें आश्चर्य कारक होने से 'आश्चर्यक' या 'अच्छेरा' कहा जाता है। जैन शासन में भगवान् ऋषभदेव से लेकर भगवान् महावीर के समय तक ऐसी दश अद्भुत या आश्चर्यजनक घटनाएँ घटी हैं। इनमें से पहली, दूसरी, चौथी, छठी और आठवीं घटना भगवान् महावीर के शासनकाल से सम्बन्धित हैं और शेष अन्य तीर्थंकरों के शासनकालों से सम्बन्ध रखती हैं।
लोकप्रकाश का समीक्षात्मक अध्ययन
इस प्रकार जम्बूद्वीप में सात क्षेत्र हैं। मध्य विभाग में एक महाविदेह है और उत्तर - दक्षिण में तीन-तीन क्षेत्र हैं। इन सात क्षेत्रों में भरत और ऐरवत दोनों एक सदृश हैं, हैरण्यवंत और हैमवंत दोनों समान हैं तथा रम्यक् एवं हरिवर्ष क्षेत्र परस्पर समान हैं। इसी प्रकार महाविदेह क्षेत्र का पूर्वमहाविदेह और पश्चिम महाविदेह एवं देवकुरु और उत्तरकुरु परस्पर समान हैं। इन कुल नौ भूमियों में भरत, ऐरवत और महाविदेह ये तीन कर्मभूमियाँ हैं एवं शेष छहों भूमियाँ अकर्मभूमियाँ
हैं।
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जम्बूद्वीप में कुल छः वर्षधर पर्वत हैं। महाविदेह क्षेत्र से उत्तरदिशा में तीन और दक्षिण में भी तीन वर्षधर पर्वत होते हैं। हिमवान और शिखरी पर्वत दोनों समान हैं, वैसे ही रुक्मी और महाहिमवान पर्वत समान हैं एवं इसी तरह नीलवान और निषध पर्वत एक सदृश हैं। मेरुपर्वत अद्वितीय है।
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(7) महाविदेह क्षेत्र
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नीलवान पर्वत और निषध पर्वत इन दोनों के मध्य समचौरस क्षेत्र महाविदेह क्षेत्र है। सभी क्षेत्रों में महान् होने से यह क्षेत्र महाविदेह कहलाता है । " महाविदेह क्षेत्र के चार विभाग हैं- पूर्व विदेह, पश्चिमविदेह, देवकुरु और उत्तरकुरु । " मेरुपर्वत की उत्तर दिशा में गंधमादन और माल्यवान पर्वतों के मध्य में उत्तरकुरु स्थान है एवं मेरुपर्वत की दक्षिण दिशा में विद्युत्प्रभ और सौमनस नामक दो गजदंत पर्वतों के मध्य देवकुरु स्थान है।" इसी तरह मेरुपर्वत की पूर्व दिशा में पूर्वविदेह और पश्चिम दिशा में पश्चिमविदेह है। इस महाविदेह क्षेत्र की उत्तरदिशा में वैडूर्य मणिमय नीलवान नामक