Book Title: Lokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Hemlata Jain
Publisher: L D Institute of Indology

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Page 340
________________ क्षेत्रलोक 311 ७. मध्यलोक का मध्यभाग रुचकप्रदेश, चौथी एवं पाँचवीं नरकभूमि के बीच का अन्तराल अधोलोक का मध्यभाग तथा ब्रह्मलोक के नीचे रिष्ट प्रतर में ऊर्ध्वलोक का मध्यभाग है। ८. मध्यलोक का मध्यभाग रुचक प्रदेश दिशा और विदिशाओं का उत्पत्ति स्थान है। इस केन्द्र ___ बिन्दु से जो सीधा ६० डिग्री का कोण बनाती हैं वे दिशा कहलाती हैं और जो तिरछी होती हैं वे विदिशा कहलाती हैं। छह दिशाएँ और चार विदिशाएँ कुल दस दिशाएँ मानी जाती हैं। ६. यह सम्पूर्ण लोक ऊपर-नीचे चारों ओर से तीन प्रकार के वातवलयों से परिवेष्टित है। सर्वप्रथम घनोदधि वातवलय, फिर घनवातवलय और अन्त में तनुवातवलय होता है। १०.वेत्रासन आकार वाले अधोलोक में रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुकाप्रमा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमःप्रभा और महातमःप्रभा ये सात पृथ्वियाँ हैं। ११. मध्यलोक में जम्बूद्वीप, लवण समुद्र, धातकीखण्ड, कालोदधि समुद्र, पुष्करवरद्वीप, पुष्करवर समुद्र, वारुणीवर द्वीप, वारुणीवर समुद्र आदि असंख्यात द्वीप और असंख्यात समुद्र हैं। एक-एक द्वीप, एक-एक समुद्र क्रम से एक-दूसरे को घेरे हुए हैं। १२.जम्बूद्वीप में भरत आदि सात क्षेत्र हैं और हिमवान आदि छह वर्षधर पर्वत हैं। जम्बूद्वीप के मध्य अद्वितीय सुमेरु पर्वत है। १३. जम्बूद्वीप, लवण समुद्र, धातकीखण्ड, कालोदधि समुद्र और पुष्करवर द्वीप का अर्ध भाग ये पाँच क्षेत्र मनुष्य क्षेत्र हैं, जिनका विस्तार पैंतालीस लाख योजन है। इससे बाहर मनुष्य का न जन्म होता है और न ही मृत्यु। १४.मध्यलोक के मध्यभाग रुचक से ७६० योजन के बाद ज्योतिष चक्र प्रारम्भ होता है। इस __चक्र में तारामण्डल, चन्द्रमण्डल और सूर्यमण्डल है। १५.रुचक से ६०० योजन ऊपर की ओर जाने पर ऊर्ध्वलोक का प्रारम्भ होता है। ऊर्ध्वलोक में सर्वप्रथम समश्रेणि में स्थित सौधर्म और ईशान दो देवलोक हैं और उनसे असंख्य कोटाकोटि योजन ऊपर सनत्कुमार और माहेन्द्र नामक तीसरा व चौथा देवलोक है। इनसे ऊपर पाँचवां ब्रह्मलोक है। पाँचवे से ऊपर छठा लान्तक, छठे से ऊपर सातवां महाशुक्र और सातवें से ऊपर आठवां सहस्रार देवलोक है। आठवें से ऊपर उत्तर-दक्षिण में क्रमशः नवां आनत एवं दसवां प्राणत देवलोक है। इन दोनों से ऊपर क्रमशः ग्यारहवाँ आरण एवं बारहवाँ अच्युत देवलोक है। इनसे ऊपर क्रमशः नौ ग्रैवेयक और पाँच अनुत्तर विमान है। पाँचवें अनुत्तर विमान से १२ योजन ऊपर सिद्धशिला है। बारह देवलोंकों में पहले-दूसरे देवलोक, तीसरे सनत्कुमार देवलोक और छठे लान्तक देवलोक के नीचे एक-एक

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