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लोकप्रकाश का समीक्षात्मक अध्ययन एक शुद्धपद है और व्याकरण सम्मत जो शुद्ध पद होता है, उसका वाच्य अवश्य होता है। शुद्धपद 'काल' अनुमान से कालद्रव्य को सिद्ध करता है। ५५ ७. यदि पृथ्वी पर काल रूप नियामक तत्त्व को स्वीकार न करें तो वृक्षों पर एक साथ ही पत्र, पुष्प और फल की उत्पत्ति स्वीकार करनी पड़ेगी। अतः इससे भी 'काल' की भिन्न द्रव्यता सिद्ध होती
८. बालक के शरीर की कोमलता, युवा पुरुष के शरीर का तेज और वृद्ध के शरीर की जीर्णता-शीर्णता आदि ये अवस्थाएँ चलती रहती हैं। ६. पृथ्वी पर होने वाली छहों ऋतुओं का परिमाण निर्धारित है। यथा- ग्रीष्म ऋतु में सूर्य की उग्र किरणों से पृथ्वी का रस सूख जाता है, दिन की वृद्धि और रात्रि क्षीण होती है। इस तरह से विविध ऋतुभेद जगत में प्रसिद्ध हैं। इस प्रकार ऋतुओं का परिमाण कालहेतु के बिना असम्भव है। अतः काल की द्रव्यता इससे भी सिद्ध है। १०. यदि पदार्थ का नियामक काल न हो तो अतीत अथवा अनागत पदार्थ का कथन भी वर्तमान रूप में ही करना होगा, जो हमें अभीष्ट नहीं है। अतः पदार्थ के परस्पर मिश्र हो जाने की संभावना के कारण नियामक कालद्रव्य की द्रव्यता सिद्ध होती है। ११. मूर्तद्रव्यों में होने वाले वृद्धि, हानि, वर्तना, परिणाम, क्रिया, परत्व एवं अपरत्व कार्यों से भी काल की द्रव्यता सिद्ध होती है। यथा मनुष्यों में बल, बुद्धि, देहमान, आयु प्रमाण आदि की तथा पुद्गलों में उत्तम वर्ण, गंध आदि की क्रमशः हानि होने में अवसर्पिणी काल कारण होता है, तो वहीं उत्सर्पिणी काल की कारणता से पुनः इसमें वृद्धि होने लगती है। भूखण्ड के किसी एक क्षेत्र में ज्वार के अंकुर ही निकले हैं और किसी क्षेत्र में ज्वार पक चुकी है इस प्रकार नवीनता और जीर्णता रूप स्थिति में काल कारण है।" मिट्टी का घट रूप परिणमन, सुवर्ण का कुण्डलादि में परिणमन, दूध का दही रूप में परिणमन होना इत्यादि सभी परिणामों में काल की कारणता व्याप्त है।" सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्रों के गमन और भ्रमण में, तूफान के आने में, खेती करने आदि सभी क्रियाओं में काल-द्रव्य कारण है।" बलराम १० वर्ष का है और कृष्ण ८ वर्ष का है, अतः बलराम-कृष्ण से ज्येष्ठ है और कृष्ण बलराम से कनिष्ठ है। इस प्रकार काल के कारण ही ज्येष्ठत्व और कनिष्ठत्व होता है। १२. जीव और पुद्गल दोनों द्रव्यों में स्वभावपर्यायपरिणमन और विभावपर्यायपरिणमन दोनों पर्याय परिणमन काल के निमित्त से ही संभव हैं। सभी द्रव्यों में उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य रूप में पर्याय-परिणमन प्रतिसमय होता रहता है। यह पर्याय दो प्रकार की है- १. स्वभाव पर्याय २. विभाव पर्याय। धर्म,