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काललोक
323 अधर्म, आकाश और काल इन चारों अमूर्त द्रव्यों का स्वाभाविक गुण अगुरुलघु है। इस गुण में छह प्रकार की वृद्धि और छह प्रकार की हानि रूप पर्याय परिणमन होता है। यही स्वभावपर्याय परिणमन कहलाता है।"
जीवद्रव्य की ज्ञान-दर्शन-सुख-वीर्य रूप अनन्तचतुष्टय आदि स्वभाव पर्याय हैं तथा क्रोध-मान-माया-लोभ-राग-द्वेष और नर-नारक-तिर्यक्-देव आदि विभाव पर्याय हैं। इसी प्रकार पुद्गलों की रूप-रस-गंध आदि स्वभाव पर्याय हैं तथा व्यणुक, त्र्यणुक आदि विभाव पर्याय हैं।
"जीवानां स्वभावपर्यायम्-अनन्तचतुष्ट्यात्मकं ज्ञानदर्शन-सुखीवर्यात्मकं विभावपर्याय क्रोधमानमायालोभरागद्वेषादिकं नरनारकतिर्यग्देवादिरूपं च पुद्गलानां स्वभावपर्याय रूपरसगन्धादिपर्यायं विभावपर्यायं द्वयणुकत्र्यणुकादिस्कन्धपर्यन्तपर्यायं करेदिं कारयति उत्पादयतीत्यर्थः । स चं निश्चयकालः।" १३. जिस प्रकार घड़ा बनने में कुम्हार का चाक निमित्त बनता है उसी प्रकार पाँचों अस्तिकायों की वर्तना का निमित्त कारण कालद्रव्य है। कालद्रव्य के वर्तन गुण से ही पाँचों अस्तिकायों की वर्तना हो पाती है, स्वयं वर्तन करने में वे पूर्ण समर्थ नहीं हैं। अतः इससे भी काल की सिद्धि होती है। मार्गप्रकाश में भी यह कहा गया है कि यदि काल द्रव्य का अस्तित्व स्वीकार न किया जाए तो पदार्थों का परिणमन नहीं हो पाएगा और परिणमन नहीं होगा तो अन्य द्रव्य का अस्तित्व भी न हो पाएगा और उसकी पर्याय भी न हो सकेगी। इस प्रकार सभी के अभाव का प्रसंग उपस्थित हो जायेगा। अतःपरिणमन से कालद्रव्य का अस्तित्व सिद्ध होता है।
कालाभावे न भावानां परिणामस्तदन्तरात् ।
___ न द्रव्यं नापि पर्यायः सर्वाभावः प्रसज्यते।।" कालस्वरूप
लोक में व्याप्त धर्म, अधर्म, आकाश, जीव और पुद्गल पाँच ही द्रव्यों की पर्यायों का परिणामक तत्त्व कालद्रव्य है।" निश्चय से सभी द्रव्यों में पर्याय निरन्तर परिवर्तित होती रहती है, परन्तु उन पर्यायों का परिणमन कालद्रव्य हेतु द्वारा ही होता है। व्यवहार से कालद्रव्य जीव-अजीव (पुद्गलद्रव्य) की पर्यायों का परिणामक कहा जाता है। वस्तुतः असर्वज्ञ, अतीत, अनागत और वर्तमान के वर्तन या पर्याय से ही कालद्रव्य को जानते हैं, अतः काल अनुमान गम्य है। सर्वज्ञ प्रत्येक समय में होने वाली वर्तना को प्रत्यक्ष जानते हैं अर्थात् वे निश्चय और व्यवहार दोनों से कालद्रव्य को पूर्णतया जानते हैं।
जैन आगम ग्रन्थ उत्तराध्ययन, समवायांग, स्थानांग और प्रश्नव्याकरण सूत्र में काल की थोड़ी-थोड़ी चर्चा मिलती है। उत्तराध्ययन सूत्र में काल को षड्द्रव्य में स्वीकार कर उसकी द्रव्यता का