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क्षेत्रलोक
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| वैताढ्य
पर्वत है।
सात महाक्षेत्र क्र. | सात महाक्षेत्र का लम्बाई
स्थान
मध्यगिरि महानदी नाम १ भरतक्षेत्र पूर्व समुद्र जम्बूद्वीप के दक्षिण | दीर्घ वैताढ्य | पूर्व में गंगा नदी पश्चिम समुद्र में
पश्चिम में सिंन्धु १४४७१ योजन,
नदी ६ कला | २ | हिमवंत क्षेत्र ३७६७४ योजन, | लघु हिमवंत पर्वत | शब्दापाती वृत्त । पूर्व में रोहिता लगभग १६ कला | के उत्तर में | वैताढ्य नदी पश्चिम में
रोहिताशा नदी ३ | हरिवर्ष क्षेत्र ७३८०१ योजन, | महाहिमवंत पर्वत | गंधापाती वृत्त । | पूर्व में १७.५ कला के उत्तर में
हरिसलिला नदी पश्चिम में
हरिकान्ता नदी ४ | महाविदेह क्षेत्र १००००० योजन | निषध-नीलवंत । मेरु पर्वत पूर्व में सीता
पर्वत के मध्य में
नदी पश्चिम में
सीतोदा नदी | रम्यक् क्षेत्र ७३८०१ योजन | नीलवंत पर्वत के माल्यवंत वृत्त | पूर्व में नरकान्ता
| उत्तर और रुक्मी | वैताढ्य नदी पश्चिम में पर्वत के दक्षिण में
नारीकान्ता नदी ६ हिरण्यवंत क्षेत्र ३७६७४ योजन | रुक्मी पर्वत के विकटापाती वृत्त | | पूर्व में
लगभग १६ कला | उत्तर और शिखर | वैताढ्य सुवर्णकूला नदी | पर्वत के दक्षिण में
पश्चिम में
रूपकूला नदी ७ | ऐरवत क्षेत्र १४४७१ योजन | शिखरी पर्वत के दीर्घ वैताढ्य पूर्व में रक्ता | उत्तर और लवण
नदी पश्चिम में समुद्र के दक्षिण में
रक्तवती नदी मेरुपर्वत
मेरुपर्वत का अपर नाम कनकाचल अथवा सुमेरु पर्वत भी है। देवकुरु की उत्तर दिशा में, उत्तरकुरु की दक्षिण दिशा में, पूर्वविदेह की पश्चिम दिशा में और पश्चिम विदेह की पूर्व दिशा में