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लोकप्रकाश का समीक्षात्मक अध्ययन तेरह परमाणु वाला आकाश-प्रदेश
यह द्रव्य दिशा दो प्रकार की है- आगमतः द्रव्य दिशा और नोआगमतः द्रव्य दिशा।" आगमतः द्रव्य दिशा से तात्पर्य है कि दिशा का सम्यक् ज्ञान होने पर भी उसका नामोच्चारण करते समय उसमें उपयोग न होना। यथा कोई दिशाविद् किसी द्रव्य की दिशाओं के विषय में समझाते हुए दिशाओं का ठीक-ठीक उच्चारण करता है, परन्तु उसका उसमें उपयोग नहीं होता है अर्थात् द्रव्य की पूर्व आदि दिशा का उल्लेख तो कर रहा है, परन्तु स्वयं की अंगुली सही जगह पर नहीं रखता है इसलिए यह आगमतः द्रव्य दिशा है। क्योंकि बोलते समय दिशाविद् का उपयोग उसमें नहीं है।
नोआगमतः द्रव्यदिशा में उपयोग भी नहीं होता है तथा ज्ञान भी नहीं होता है। यह द्रव्य दिशा तीन प्रकार की होती है"- १. ज्ञशरीर नो आगमतः द्रव्य दिशा २. भव्यशरीर नोआगमतः द्रव्य दिशा ३. तद्व्यतिरिक्त नोआगमतः द्रव्य दिशा।
कोई दिशाविद् यदि अपना शरीर छोड़ दे अर्थात् मृत्यु प्राप्त करे तब वह ज्ञाता का शरीर ज्ञशरीर नोआगम द्रव्य दिशा कहलाता है, क्योंकि वह भूतकाल में दिशा का ज्ञाता था, वर्तमान में नहीं। इसी तरह जो जीव भविष्यकाल में दिशाविद् बनेगा वह भव्यशरीर नोआगमतः द्रव्यदिशा कहलाता है। इन दोनों से भिन्न जब किसी द्रव्य को अन्य द्रव्य की सहायता से दिशा का ज्ञान होने वाला हो तब वह द्रव्य तद्व्यतिरिक्त नोआगमतः द्रव्य दिशा कहलाता है, यथा चुम्बक, एटलस,