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तृतीय अध्याय
जीव-विवेचन (2)
जीव का जैन दर्शन में विभिन्न द्वारों से विवेचन हुआ है। द्वितीय अध्याय में १० द्वारों के आधार पर चार गतियों के जीवों की विभिन्न विशेषताओं पर प्रकाश डाला गया है। अब तृतीय अध्याय में अवगाहना, समुद्घात, गति, आगति, अनन्तराप्ति, समयसिद्धि, लेश्या, दिगाहार, संहनन और कषाय इन १० द्वारों से लोकप्रकाश ग्रन्थ को मुख्य आधार बनाकर विवेचन प्रस्तुत है।
ग्यारहवांद्वार : अवगाहन अथवा अंगमान का प्रख्यापन जीव जितने आकाश प्रदेशों को रोक कर रहता है वह जीव का अंगमान अथवा अवगाहना कहलाती है। दूसरे शब्दों में जीव की लम्बाई, चौड़ाई, ऊँचाई आदि शरीर प्रमाण उसका अंगमान या अवगाहना होती है।
अंगमानं तु तुंगत्वमानमंगस्य देहिनाम् ।
स्थूलता पृथुताद्यं तु ज्ञेयमौचित्यतः स्वयम्।।' 'चउब्विहा ओगाहणा पण्णत्ता" स्थानांग के इस सूत्र के अनुसार जीव की अवगाहना चार प्रकार से ज्ञात की जा सकती है- १. द्रव्यावगाहना २. क्षेत्रावगाहना ३. कालावगाहना ४. भावावगाहना। उपाध्याय विनयविजय ने द्रव्यावगाहना की स्पष्ट चर्चा लोकप्रकाश में की है। जीवों की अवगाहना या अंगमान इस प्रकार हैजीवों के नाम
जघन्य अवगाहना | उत्कृष्ट अवगाहना। पर्याप्तक-अपर्याप्तक पृथ्वीकायिक जीव | अंगुल का असंख्यातवां | अंगुल का असंख्यातवां
भाग | सूक्ष्म-बादर पृथ्वीकायिक जीव सूक्ष्म-बादर अप्रकायिक, तेजस्कायिक और वायुकायिक जीव सूक्ष्म अपर्याप्तक-पर्याप्तक वनस्पतिकायिक - जीव | बादर अपर्याप्तक वनस्पतिकायिक जीव बादर पर्याप्तक वनस्पतिकायिक जीव
कुछ अधिक एक हजार योजन
क्र.
भाग