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लोकप्रकाश का समीक्षात्मक अध्ययन प्राप्त कर सकता है।" तेजस्काय और वायुकाय के जीव अनन्तर जन्म में समकित प्राप्त नहीं करते
पृथ्वीकायिक और अप्कायिक जीव अनन्तर जन्म में एक समय में चार एवं वनस्पतिकायिक जीव छह मोक्ष जाते हैं।
आगमकारों ने सूक्ष्म और बादर एकेन्द्रिय जीवों की अनन्तराप्ति और समयसिद्धि का भिन्न-भिन्न विभाजन नहीं किया है। लोकप्रकाशकार ने भी उन्हीं का अनुकरण किया है। (2) विकलेन्द्रिय-विकलेन्द्रिय जीव अनन्तर जन्म में मनुष्य भव प्राप्त करे तो सर्वविरति रूप दीक्षा ग्रहण कर सकता है, परन्तु स्वभाव से मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकता। मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकता है तो एक समयसिद्धि का प्रश्न ही नहीं उठता है
एकस्मिन् समये सिद्धिर्विकलानां न सम्भवेत्। :
ग्रामो नास्ति कुतः सीमा मोक्षो नास्तीति सा कुतः ।। (3) तिर्यच पंचेन्द्रिय- तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीव अनन्तर भव में समकित एवं मोक्ष प्राप्त कर सकता है और एक समय में ऐसे दस ही जीव मोक्ष में जाते हैं
लभतेऽनन्तरभवे सम्यक्त्वादि शिवावधि।
ते चैकस्मिन् क्षणे मुक्तिं यान्तो यान्ति दशैव हि।।" (4) मनुष्य- सम्मूर्छिम मनुष्यों की अनन्तराप्ति और समयसिद्धि की गणना पृथक् से नहीं की जाती है क्योंकि सम्मूर्छिम जीव एकान्त मिथ्यात्वी होते हैं, अतः उन्हें समकित की प्राप्ति नहीं होती है। गर्भज मनुष्य अनन्तर जन्म में मनुष्यत्व प्राप्त कर सम्यक्त्व, देशविरति चारित्र और मोक्ष प्राप्त करता है, परन्तु अर्हत्, चक्रवर्ती (बलदेव) या वासुदेव को अनन्तर जन्म में समकित प्राप्त नहीं
होता।६०
गर्भज मनुष्य अनन्तर जन्म में मनुष्यत्व प्राप्त करके एक समय में केवल बीस ही सिद्धि प्राप्त करते हैं। यदि पुरुष अनन्तर जन्म में मनुष्यत्व प्राप्त किया जाए तो दस और स्त्रियाँ यदि अनन्तर जन्म में मनुष्यत्व प्राप्त करे तो एक समय में बीस सिद्ध होते हैं।" (5) देव- लघुकर्मी देव अनन्तर जन्म में समकित, देशविरति, सर्वचारित्र और मोक्ष भी प्राप्त करते हैं। देव अनन्तर भव में एक समय में उत्कृष्ट १०८ सिद्ध होते हैं। भवनपति और व्यन्तर देव अनन्तर भव में से दस जीव सिद्ध होते हैं और इनकी देवियाँ पाँच ही सिद्ध होती है। ज्योतिष्क देवों में से दस जीव सिद्ध होते हैं और उनकी देवियाँ बीस सिद्ध होती हैं। वैमानिक देव एक सौ आठ सिद्ध होते हैं।