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(२) वनस्पतिकायिक जीव यदि पृथ्वीकाय, अप्काय, तेजस्काय एवं वायुकाय में जघन्य स्थिति प्राप्त कर उत्पन्न हों तो
(३) यदि वनस्पतिकायिक जीव वनस्पतिकाय में ही
(१) विकलेन्द्रिय जीव यदि पांचों स्थावरों में से प्रत्येक दो
में जघन्य स्थिति प्राप्त कर उत्पन्न हों तो
दो
(३) पांचों स्थावर यदि विकलेन्द्रिय में जघन्य स्थिति में दो उत्पन्न हो तो
(२) यदि विकलेन्द्रिय जीव पांचों स्थावरों में उत्कृष्ट स्थिति प्राप्त कर उत्पन्न हों तो
(४) यदि पांचों स्थावर विकलेन्द्रिय में उत्कृष्ट स्थिति में उत्पन्न हों तो
(६) विकलेन्द्रिय जीव यदि विकलेन्द्रिय में उत्कृष्ट स्थिति प्राप्त कर उत्पन्न हों तो
(५) विकलेन्द्रिय जीव यदि विकलेन्द्रिय में से प्रत्येक में दो जघन्य स्थिति प्राप्त कर उत्पन्न हों तो
(१) युगलिक को छोड़ कर संज्ञी मनुष्य, तियंच एवं असंज्ञी तिर्यंच यदि परस्पर में उत्कृष्ट स्थिति में उत्पन्न हों तो
दो
दो
दो
(३) संज्ञी मनुष्य यदि वायुकाय तथा तेजस्काय में जघन्य एवं उत्कृष्ट स्थिति प्राप्त कर उत्पन्न हों
ज
दो
(२) पृथ्वीकायादि पांच स्थावर तथा विकलेन्द्रिय में यदि दो युगलिक भिन्न संज्ञी मनुष्य, तिर्यंच एवं असंज्ञी तिर्यंच उत्कृष्ट स्थिति में उत्पन्न हों तो
लोकप्रकाश का समीक्षात्मक अध्ययन
अनन्त
असंख्यात
संख्यात
आठ
संख्यात
आठ
संख्यात
आठ
आठ
आठ
存
औदारिक से वैक्रिय शरीर तथा वैक्रिय से औदारिक शरीर प्राप्त जीवों का भवसंवेध विश्लेषण
संज्ञी मनुष्य अथवा तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीव प्रथम रत्नप्रभा नरक भूमि से लेकर छठी तमप्रभा नरकभूमि में जघन्य दो बार और उत्कृष्ट आठ बार उत्पन्न हो सकता है । उत्कृष्ट आठ बार संज्ञ मनुष्य यातिर्यंच पंचेन्द्रिय नरकभूमियों" में इस तरह उत्पन्न होता है