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जीव - विवेचन (4)
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ईशानकल्प में २८ लाख विमान हैं, जबकि सौधर्म कल्प में बत्तीस लाख विमान हैं। दक्षिण दिशा में कृष्ण पाक्षिक जीव का उत्पाद अधिक होता है अतः दक्षिणदिशावर्ती सौधर्मकल्प में देव विमान एवं दिशा के कारण अधिक होते हैं।
२७, २८ एवं २६ इनसे भवनवासी देव असंख्यात गुणा अधिक और देवों से देवियां असंख्यातगुणा अधिक होती हैं।
३०.भवनपति देवियों की अपेक्षा रत्नप्रभा पृथ्वी के नारक असंख्यातगुणा होते हैं। वे अंगुल मात्र परिमित क्षेत्र के प्रदेशों की राशि के द्वितीय वर्गमूल से गुणित प्रथम वर्गमूल की जितनी प्रदेश राशि होती है, उतनी श्रेणियों में रहे हुए आकाश के प्रदेशों के बराबर होते हैं।
३१. उनकी अपेक्षा खेचर तिर्यंच पंचेन्द्रिय पुरुष असंख्यात गुणा अधिक होते हैं क्योंकि वे प्रतर असंख्यातवें भाग में रही हुई असंख्यात श्रेणियों के आकाश प्रदेशों के बराबर हैं। ३२.खेचर पुरुष की अपेक्षा खेचर तिर्यंच पंचेन्द्रिय स्त्रियां संख्यात गुणी हैं क्योंकि तिर्यंच जीवों में पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियां तिगुणी होती हैं। कहा भी गया है - 'तिगुणा तिरूवअहिया तिरियाणं इत्थिओ मुणेयव्वा । "
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३३. उनकी अपेक्षा स्थलचर तिर्यंच पंचेन्द्रिय पुरुष संख्यात गुणा अधिक हैं, क्योंकि वे बृहत् प्रतर के असंख्यातवें भाग में रही हुई असंख्यात श्रेणियों के आकाश प्रदेशों की राशि के बराबर हैं।
३४.उनकी अपेक्षा स्थलचर तिर्यंच पंचेन्द्रिय स्त्रियाँ संख्यात गुणा अधिक हैं, क्योंकि वे तिगुनी और तीन अधिक होती हैं।
३५.इनकी अपेक्षा जलचर तिर्यंच पंचेन्द्रिय पुरुष संख्यात गुणा अधिक हैं, क्योंकि वे बृहत्तम प्रतर के असंख्यातवें भाग में रही हुई असंख्यात श्रेणियों के आकाश प्रदेशों की राशि के बराबर हैं।
३६.जलचर तिर्यंच पंचेन्द्रिय पुरुष की अपेक्षा जलचर स्त्रियां संख्यात गुणा अधिक होती हैं। ३७.उनकी अपेक्षा वाणव्यन्तर देव संख्यात गुणा अधिक हैं क्योंकि संख्यात गुणा कोटाकोटी योजन प्रमाण सूची रूप जितने खण्ड एक प्रतर में होते हैं उतने ही सामान्य व्यन्तर देव हैं, इनमें देवियाँ भी सम्मिलित होती हैं।
३८.वाणव्यन्तर देवों की अपेक्षा वाणव्यन्तरी देवियाँ संख्यात गुणी हैं, क्योंकि देवों की अपेक्षा देवियाँ बत्तीस गुणा और बत्तीस अधिक हैं।
३६. वाणव्यन्तर देवियों की अपेक्षा ज्योतिष्क देव संख्यात गुणा अधिक हैं। ये देव सामान्य रूप से