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लोकप्रकाश का समीक्षात्मक अध्ययन नेमिचन्द्रसिद्धान्तचक्रवर्ती ने भी इन्द्रिय शब्द की विविध निरुक्तियों का उल्लेख किया है - 1. प्रत्यक्षनिरतानि इन्द्रियाणि- अक्ष अर्थात् इन्द्रिया अक्ष अक्ष के प्रति जो प्रवृत्त हो
वह प्रत्यक्ष है। प्रत्यक्ष का अर्थ विषय और इन्द्रियजन्य ज्ञान है। अतः इन्द्रियजन्य ज्ञान में जो ___ निरत अर्थात् व्यापार युक्त है, वह इन्द्रिय है। 2. अर्यते इति अर्थः स्वार्थनिरतानीन्द्रियाणि- अर्थात् जो जाना जाए वह अर्थ है।
अपने अर्थ में जो निरत हैं वे इन्द्रियाँ हैं। 3. इन्दनादाधिपत्यात् इन्द्रियाणि- अर्थात् स्वामित्व के कारण इन्द्रियाँ हैं। स्पर्श, रस,
गन्ध, रूप और शब्द सम्बन्धी ज्ञानावरण कर्मों के जो क्षयोपशम द्रव्येन्द्रिय के कारण हैं वे इन्द्रियाँ हैं। 4. इन्द्रस्य आत्मनो लिंग- अर्थात् जो इन्द्र (आत्मा) का लिंग है वह इन्द्रिय है। 5. यदि वा इन्द्रेण कर्मणा सृष्टं जुष्टं तथा दृष्टं दत्तं चेति तदिन्द्रियम्
अथवा इन्द्र अर्थात् कर्म के द्वारा रची गयी है, सेवित है, दृष्ट अथवा दत्त है वह इन्द्रिय है।
इस प्रकार इन्द्रियाँ कर्मविद्ध आत्मा की ही विविध प्रकार से अभिव्यक्तियाँ हैं। इन्द्रिय भेद
'श्रोत्राक्षि-घ्राण-रसन-स्पर्शनानीति पंचधा अर्थात् श्रोत्र, अक्षि, घ्राण, रसना और स्पर्शन ये पांच इन्द्रियाँ हैं। इन पाँचों इन्द्रियों के अवान्तर भेद भी हैं। पाँचों इन्द्रियाँ अन्वर्थ हैं और इनमें कर्तृसाधनता और करणसाधनता दोनों लक्षित होती हैं।" कर्तृसाधनता
करणसाधनता १. स्पृशति इति स्पर्शनम्।
स्पृश्यते अनेन इति स्पर्शनम्। २. रसतीति रसनम्।
रस्यते अनेन इति रसनम्। ३. जिघ्रतीति घ्राणम्।
जिघ्रति अनेन इति घ्राणम्। ४. चष्टे इति चक्षुः।
चष्टे अनेन इति चक्षुः। ५. शृणोतीति श्रोत्रम्।
श्रूयते अनेन इति श्रोत्रम्। ___ "जो स्पर्शादि करे या स्पर्श आदि गुण को विषय करे वह स्पर्शन आदि तथा जिसके द्वारा स्पर्शादि किया जाए या जिसके आश्रय से शीत, उष्ण आदि स्पर्शादि की पर्याय जानी जाए वह स्पर्शन आदि ‘इन्द्रिय' कहलाती है" इस अपेक्षा से सभी इन्द्रियाँ अन्वयार्थक हैं।
ये पाँचों इन्द्रियाँ द्रव्येन्द्रिय और भावेन्द्रिय भेद से विभाजित होती हैं।" द्रव्येन्द्रिय और भावेन्द्रिय दोनों क्रमशः निवृत्ति और उपकरण तथा लब्धि और उपयोग से अवान्तर भेदों वाली होती