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जीव-विवेचन (3)
नववें गुणस्थान को प्राप्त करने वाले जीव उपशमक और क्षपक दो प्रकार के होते हैं।" जो चारित्र मोहनीय कर्म का उपशमन करते हैं, वे उपशमक जीव हैं और जो चारित्रमोहनीय कर्म का क्षय करते हैं वे क्षपक जीव हैं। इस गुणस्थान के अन्तिम समय तक संज्वलन लोभ को छोड़कर सभी कषाय और नोकषाय समाप्त हो जाते हैं। 10. सूक्ष्म सम्पराय गुणस्थान
मोहनीय कर्म की अट्ठाईस प्रकृतियों में से मात्र संज्वलन लोभ कषाय के सूक्ष्म खण्डों का उदय रहने पर और शेष सत्ताईस प्रकृतियों के क्षय अथवा उपशम से होने वाला आत्मिक गुण परिणाम दसवें गुणस्थान में पहुँच जाता है। लोभ का सूक्ष्म अंश रहने से इसका नाम सूक्ष्म सम्पराय गुणस्थान है
सूक्ष्म कीट्टीकृतो लोभकषायोदयलक्षणः ।
संपरायो यस्य सूक्ष्मसंपराय स उच्यते।।" जिस प्रकार धुले हुए गुलाबी रंग के वस्त्र में लालिमा की सूक्ष्म सी आभा रह जाती है, उसी प्रकार दशम गुणस्थानवी जीव संज्वलन लोभ के सूक्ष्म खण्डों का वेदन करता है।
__संज्वलन लोभ कषाय का भी क्षय हो जाने पर जीव दसवें गुणस्थान से सीधे बारहवें क्षीणमोह गुणस्थान में चला जाता है तथा जब संज्वलन लोभ कषाय का उपशम होता है तब वह जीव ग्यारहवें उपशान्त मोह नामक गुणस्थान में आरोहण कर जाता है। 11. उपशान्त मोह गुणस्थान
अध्यात्म मार्ग का साधक जब पूर्व अवस्था में रहे हुए सूक्ष्म लोभ को भी उपशान्त कर देता है, तब वह दसवें से ग्यारहवें गुणस्थान में आरोहण कर लेता है। इस अवस्था में पहुँच कर जीव कषायों का सर्वथा उपशमन करता है अर्थात् कषायों की सत्ता होने पर भी उनकी ऐसी स्थिति बनाता है कि उनमें संक्रमण, उद्वर्तनादिकरण, विपाकोदय अथवा प्रदेशोदय कुछ भी नहीं हो सकता। इस तरह जीव के कषायों की यह उपशमित अवस्था उपशान्त मोह अथवा उपशान्तमोहनीय गुणस्थान कहलाती है और वह जीव उपशान्तकषायवीतरागछद्मस्थ कहलाता है
येनोपशमिता विद्यमाना अपि कषायकाः। नीता विपाकप्रदेशोदयादीनामयोग्यताम् ।। .. उपशान्तकषायस्य वीतरागस्य तस्य यत्।
छद्मस्थस्य गुणस्थानं तदाख्यातं तदाख्यया।।" उपशम विधि से वासनाओं एवं कषायों को दबाकर आगे बढ़ने वाले साधकों के लिए यह गुणस्थान उपशम श्रेणी का अन्तिम स्थान है अर्थात् इस गुणस्थान में विद्यमान जीव आगे के