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लोकप्रकाश का समीक्षात्मक अध्ययन
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औपशमिक भाव होता है। इस तरह आठवें गुणस्थान में क्षायिक और औपशमिक भाव दोनों होते
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हैं।
9. अनिवृत्तिबादरसम्पराय गुणस्थान
अष्टम गुणस्थान के पश्चात् जब जीव के सम समयवर्ती परिणामों में भिन्नता नहीं रहती है तब उसे नवम गुणस्थान कहा जाता है। अनन्तानुबंधी आदि तीनों कषायों का क्षय अथवा उप होने पर और संज्वलन कषाय में से मात्र सूक्ष्म लोभ का उदय रहने से उत्पन्न आत्मिक गुण परिणाम 'अनिवृत्तिबादर सम्पराय ' गुणस्थान कहलाता है । अनिवृत्त, बादर और सम्पराय इन तीन पदों का समस्त पद अनिवृत्तबादर सम्पराय होता है । अनिवृत्त पद में प्रयुक्त निवृत्त शब्द से तात्पर्य है व्यावृत्ति अर्थात् भिन्नता। सम समयवर्ती जीवों के जिन परिणामों में भिन्नता नहीं होती है वे परिणाम अनिवृत्तकरण कहलाते हैं
परस्पराध्यवसायस्थानव्यावृत्ति लक्षणा ।
निवृत्तिर्यस्य नास्त्येषोऽनिवृत्ताख्योऽसुमान् भवेत् ।।
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बादर स्थूल को कहते हैं और 'संपराय' शब्द का अर्थ कषाय है, इसलिए स्थूल कषायों को बादरसम्पराय कहते हैं
तथा किट्टीकृतसूक्ष्मसम्परायव्यपेक्षया ।
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स्थूलो यस्यास्त्यसौ स स्याद् बादरसंपरायकः । ।
इस प्रकार अनिवृत्ति रूप बादर सम्पराय को अनिवृत्तिबादर - सम्पराय गुणस्थान कहते हैं। इस गुणस्थान में कषायों का अंश जैसे-जैसे कम होता जाता है, वैसे-वैसे परिणामों की विशुद्धि बढ़ती जाती है।" इस गुणस्थान में उत्पन्न परिणामों से आयु कर्म को छोड़कर शेष सातों कर्मों की गुणश्रेणि-निर्जरा, गुणसंक्रमण, स्थितिघात और रसघात होता है। कर्मों की सत्ता का भी अत्यधिक परिमाण में नाश हो जाता है । प्रतिसमय कर्मप्रदेशों की निर्जरा भी असंख्यातगुणा बढ़ जाती
है।
इस गुणस्थान का काल जघन्य और उत्कृष्ट से अन्तर्मुहूर्त्त प्रमाण है। एक अन्तर्मुहूर्त्त में जितने समय होते हैं, उतने ही अध्यवसाय स्थान इस गुणस्थान के होते हैं। " इस गुणस्थान समसमयवर्ती जीवों के अध्यवसाय एक तुल्य शुद्धिवाले होते हैं। गुणस्थान में प्रविष्टि काल से लेकर दूसरे, तीसरे आदि क्रम से अन्तिम समय तक समान समय में अध्यवसाय भी समान ही होते हैं, इसलिए समान अध्यवसायों को एक ही अध्यवसाय स्थान माना जाता है। "" इस प्रकार भिन्न समयवर्ती परिणामों में सर्वथा विसदृशता और एक समयवर्ती परिणामों में सदृशता ही होती है।
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