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लोकप्रकाश का समीक्षात्मक अध्ययन मिथ्यात्व भेद
अतत्त्वश्रद्धान रूप मिथ्यात्व के पांच भेद हैं- आभिग्राहिक, अनाभिग्राहिक, आभिनिवेशिक, सांशयिक और अनाभोगिका प्रतिपक्ष से निरपेक्ष एकान्त अभिप्राय को स्वीकार करने वाला आभिग्राहिक मिथ्यात्व है।"" अहिंसादि लक्षणवाले समीचीन धर्म और असमीचीन धर्म दोनों में मध्यस्थता स्वीकार करना अनाभिग्राहिक मिथ्यात्व है। सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र की उपेक्षा करके पूजा आदि रूप विनय के द्वारा ही मुक्ति मानना और कुदर्शन में आसक्ति आभिनिवेशिक मिथ्यात्व है।" जिनेश्वर प्रणीत तत्त्वों में संशय करना सांशयिक मिथ्यात्व और ज्ञानावरण व दर्शनावरण कर्मोदय से अज्ञानमूलक श्रद्धान अनाभोगिक मिथ्यात्व कहलाता है।
सम्यक्मिथ्यादृष्टि जीव जगत् में सबसे अल्प, इनसे अनन्त गुना अधिक सम्यक्दृष्टि जीव और सम्यग्दृष्टि जीव से भी अनन्तगुना अधिक मिथ्यादृष्टि जीव हैं।"
__ संक्लिष्ट परिणाम वाले सूक्ष्म और बादर एकेन्द्रिय जीव मिथ्यादृष्टि होते हैं।" विकलेन्द्रिय जीव पर्याप्त अवस्था में मिथ्यादृष्टि ही होते हैं, परन्तु सासादन समकित शेष रहने की स्थिति में मृत्यु प्राप्त कर विकलेन्द्रिय गति में आया जीव अपर्याप्तावस्था में सम्यग्दृष्टि भी हो सकता है।" सम्मूर्छिम तिर्यंच पंचेन्द्रिय को सम्यक् दृष्टि और मिथ्यादृष्टि होती है और गर्भज को तीनों दृष्टियाँ होती हैं। सम्यक्दृष्टि तिर्यंच पंचेन्द्रिय देशविरति और अविरति हो सकते हैं, सर्वविरति नहीं।" सम्मूर्छिम मनुष्य" मिथ्यादृष्टि होते हैं और गर्भज मनुष्य", देव" एवं नारकी" तीनों दृष्टियों के धारक होते हैं।
छब्बीसवां द्वार : ज्ञान-विवेचन ज्ञान का अर्थ है जानना। दर्शन द्वारा जिन जीवादि तत्त्वों में श्रद्धान उत्पन्न हुआ है उनका विधिवत् यथार्थ बोध करना ही ज्ञान है। यही सम्यक् ज्ञान है। दर्शन और ज्ञान में सूक्ष्म भेद यह है कि दर्शन का क्षेत्र है अन्तरंग और ज्ञान का क्षेत्र है बहिरंग। दर्शन आत्मा की सत्ता का भान कराता है
और ज्ञान बाह्य पदार्थों का बोध उत्पन्न करता है। दोनों में परस्पर सम्बन्ध कारण और कार्य का है। जब तक आत्मावधान नहीं होगा तब तक बाह्य पदार्थों का इन्द्रियों से सन्निकर्ष होने पर भी बोध नहीं हो सकता। अतएव उमास्वाति ने मोक्षमार्ग के साधनों में दर्शन को ज्ञान से पूर्व रखा है'सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः ।"
जानने की क्रिया कभी इन्द्रिय और मन के माध्यम से होती है और कभी सीधी आत्मा से होती है। इस आधार पर सीधा आत्मा से होने वाला ज्ञान प्रत्यक्ष ज्ञान तथा इन्द्रियादि की सहायता से