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लोकप्रकाश का समीक्षात्मक अध्ययन इस गुणस्थान का जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त का होता है। २६३
तृतीय गुणस्थान में क्षायोपशमिक भाव होता है। मिथ्यात्व प्रकृति के उदय से जिस प्रकार सम्यक्त्व का निरन्वय नाश होता है, उसी प्रकार सम्यग्मिथ्यात्व प्रकृति के उदय से सम्यक्त्व का निरन्वय नाश नहीं पाया जाता है, क्योंकि सम्यग्मिथ्यात्व प्रकृति निरन्वयरूप से आप्त, आगम और पदार्थविषयक श्रद्धा का नाश करने के प्रति असमर्थ होती है। अतः उसके उदय से सत्-समीचीन और असत्-असमीचीन पदार्थ को युगपत् विषय करने वाली श्रद्धा उत्पन्न होती है। इसलिए यहाँ औदयिक भाव न कहकर क्षायोपशमिक भाव कहा जाता है।५४
जो साधक मुक्ति पथ पर आगे बढ़ते हुए अपने लक्ष्य के प्रति संशयित हो जाता है वह पतनोन्मुख आत्मा चतुर्थ श्रेणी से पतित होकर इस अवस्था में आती है। चतुर्थ गुणस्थान में यथार्थ का बोध कर पुनः पतित होकर वह आत्मा अपने अपक्रान्ति काल में आदि में प्रथम गुणस्थान को प्राप्त करती है और उत्क्रान्ति काल में प्रथम से सीधे तृतीय गुणस्थान में आती है। प्रथम और चतुर्थ दोनों गुणस्थानों से आने के कारण तृतीय गुणस्थानवी जीव में अर्धविशुद्ध श्रद्धा का भाव रहता है। प्रथम गुणस्थान से आने वाले जीव में रुचि का अभाव होता है और अरुचि का भाव भी दूर हो जाता है। इसी प्रकार चतुर्थ गुणस्थान से आने वाले जीव की जो रुचि होती है वह दूर हो जाती है और अरुचि का अभाव होता है। अतएव तृतीय गुणस्थान में रुचि-अरुचि दोनों का अभाव होता है। इसी का नाम अर्धविशुद्ध श्रद्धा है।६५ लक्षण
तृतीय गुणस्थान में आने पर जीव में जो परिवर्तन आते हैं, जिनसे यह ज्ञात होता है कि जीव तृतीय गुणस्थान की स्थिति में है, वे इस प्रकार हैं
१. यह गुणस्थान भ्रान्ति की ऐसी अवस्था है जिसमें सत्य और असत्य इस रूप में प्रस्तुत होते _ हैं कि जीव यह बोध नहीं कर पाता है कि इसमें से सत्य क्या है और असत्य क्या?अतः वह
पूर्णतः न तो भ्रान्त कहा जा सकता है एवं न अभ्रान्त। २. यथार्थ बोध या शुभाशुभ के सम्बन्ध में सम्यक् विवेक जागृत नहीं होने से व्यक्ति नैतिक ____ आचरण नहीं कर पाता है। ३. यह गुणस्थान आयुकर्म का बंध नहीं करता है। अतः इस अनिश्चित अवस्था में जीव मृत्यु
को प्राप्त नहीं होता है, क्योंकि नेमिचन्द्र के कथनानुसार मृत्यु उसी स्थिति में सम्भव है जिसमें भावी आयुकर्म का बन्ध हो सके। कलघाटगी के अनुसार भी इस अवस्था में मृत्यु सम्भव नहीं हो सकती, क्योंकि मृत्यु के समय इस संघर्ष की शक्ति चेतना में नहीं होती।