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जीव-विवेचन (3)
183 सम्यक्त्वी जीव में होती है तो सम्यक्त्व क्या है?अतः सम्यक्त्व का स्वरूप इस प्रकार है- वस्तु का यथार्थ स्वरूप पर श्रद्धान करना सम्यक्त्व है। यह सम्यक्त्व व्यवहार और निश्चय भेद से दो प्रकार का, कारक, रोचक व दीपक भेद से तीन प्रकार का"; क्षायिक, औपशमिक, क्षायोपशमिक एवं सास्वादन भेद से चार प्रकार का' तथा पूर्वोक्त चार के साथ वेदक को जोड़ने पर सम्यक्त्व पांच प्रकार का होता है। (1) व्यवहार सम्यक्त्व- सुदेव, सुगुरु और सुमार्ग को स्वीकार करना, श्रद्धा करना व्यवहार सम्यक्त्व है। (2) निश्चय सम्यक्त्व- निश्चय में आत्मा की अनुभूति अर्थात् जड़ चेतन का भेद ज्ञान होना सम्यग्दर्शन है। (3) कारक सम्यक्त्व-जिनेश्वर द्वारा उपदिष्ट क्रियाओं का आचरण करना कारक सम्यक्त्व है। (4) रोचक सम्यक्त्व- जिनोक्त क्रियाओं के आचरण में रुचि रखना रोचक सम्यक्त्व है। (5) दीपक सम्यक्त्व-जिनोक्त क्रियाओं के आचरण से होने वाले लाभों को प्रकट करना दीपक सम्यक्त्व है। (6) क्षायिक सम्यक्त्व- सम्यक्त्वमोहनीय, मिथ्यात्वमोहनीय एवं मिश्रमोहनीय, इन तीन प्रकृतियों और अनन्तानुबंधी क्रोध, मान, माया एवं लोभ इन दर्शन सप्तक के क्षय होने पर आत्मा का परिणाम विशेष क्षायिक सम्यक्त्व कहलाता है। (7) उपशम सम्यक्त्व- दर्शनमोहनीय के दर्शन सप्तक के उपशम से आत्मा में जो परिणाम होता है उसे उपशम सम्यक्त्व कहते हैं। यह सम्यक्त्व प्रतिपाती गुणस्थान तक होता है। (8) क्षयोपशम सम्यक्त्व- मिथ्यात्वमोहनीय कर्म के क्षय तथा उपशम से और सम्यक्त्व मोहनीय कर्म के उदय से आत्मा में जो परिणाम होता है उसे क्षायोपशमिक सम्यक्त्व कहते हैं। (७) सास्वादन सम्यक्त्व- उपशम सम्यक्त्व से च्युत होकर मिथ्यात्व के अभिमुख हुआ जीव, जब तक मिथ्यात्व को प्राप्त नहीं करता तब तक उसके परिणाम विशेष को सास्वादन अथवा सासादन सम्यक्त्व कहते हैं। (10) वेदक सम्यक्त्व- क्षायोपशमिक सम्यक्त्व वाला जीव जब सम्यक्त्वमोहनीय के अन्तिम पुद्गल के रस का अनुभव करता है उस समय के परिणाम विशेष को वेदक सम्यक्त्व कहते हैं। वेदक सम्यक्त्व के बाद क्षायिक सम्यक्त्व ही प्राप्त होता है।
उपशम और सास्वादन सम्यक्त्व जीव को उत्कृष्टतः पांच बार, वेदक सम्यक्त्व एक बार और क्षयोपशम सम्यक्त्व असंख्यात बार उत्पन्न होता है।