________________
195
जीव-विवेचन (3) कोई जीव चार अवस्थाओं में ही अनाहारक होता है -१. विग्रह गति की अवस्था में २. केवलिसमुद्घात की अवस्था में ३. शैलेषी अवस्था में ४. सिद्ध अवस्था में। आहार ग्रहण करने की विधियाँ ___जीव के आहार ग्रहण करने की तीन विधियाँ-लोमाहार, प्रक्षेपाहार व ओजाहार प्रमुख रूप से प्रचलित हैं। कहीं-कहीं इसकी चार विधियों (पूर्ववत् तीन और मनोभक्षी आहार) का भी वर्णन मिलता है। इन्द्रियों के लोमों या रोमों के द्वारा किया गया आहार लोमाहार कहलाता है। कवल या ग्रास के रूप में मुख के द्वारा जो आहार किया जाता है उसे कवलाहार या प्रक्षेपाहार कहते हैं।" सम्पूर्ण शरीर के द्वारा आहार के योग्य पुद्गलों का ग्रहण करना ओजाहार कहलाता है। मन के द्वारा आहार ग्रहण करना मनोभक्षी आहार है।६३
लोमाहार २४ दण्डक के सभी जीव करते हैं। द्वीन्द्रिय से लेकर मनुष्य तक के सभी पर्याप्तक औदारिक शरीरी जीव प्रक्षेपाहार करते हैं। नैरयिक एवं देवगति के जीव वैक्रियशरीर धारी होने के कारण कवलाहार नहीं करते हैं। मात्र स्पर्शन इन्द्रिय होने से एकेन्द्रिय जीव भी कवलाहार नहीं करते हैं। ओजाहार सभी अपर्याप्तक जीव करते हैं। पर्याप्तक होने पर वे लोमाहार या कवलाहार करते हैं। जैन सम्प्रदाय की दिगम्बर मान्यता के अनुसार केवली मनुष्य कवलाहारी नहीं होते,अपितु मात्र लोमाहारी होते हैं, जबकि श्वेताम्बर मान्यता के आधार पर वे कवलाहारी भी होते हैं। मनोभक्षी आहार मात्र देवों को ही होता है।
आहार करने की इच्छा कितने काल में उत्पन्न होती है, इस आधार पर आहार के दो प्रकार- आभोगनिवर्तित और अनाभोगनिवर्तित किए गए हैं।" आभोगनिवर्तित का अर्थ हैइच्छायुक्त होकर उपयोगपूर्वक होने वाला आहार।"" अनाभोगनिवर्तित से तात्पर्य है- इच्छा रहित उपयोगपूर्वक होने वाला आहार। यह आहार प्रतिसमय विरह रहित निरन्तर होता है जबकि आभोगनिर्वर्तित आहार के लिए जघन्य एवं उत्कृष्ट अलग-अलग काल निर्धारित है। एकेन्द्रिय जीव बिना विरह के निरन्तर प्रतिसमय अनाभोगनिर्वर्तित आहार करता है। शेष सभी जीव दोनों आहार करते हैं।
जीव एक जन्म का आयुष्य पूर्ण कर अन्य जन्म ग्रहण करते समय जो गति करता है वह विग्रहगति कहलाती है। जीव की यह गति आकाश प्रदेश की पंक्ति में श्रेणीबद्ध होती है। जीव जब श्रेणि के अनुसार सीधी-सरल रेखा में गमन कर गन्तव्य स्थान पर पहुँचता है तो वह ऋजुगति या ऋजुश्रेणि कहलाती है और जब जीव मोड़ खाते हुए अथवा वक्रता पूर्वक गन्तव्य स्थान पर पहुँचता