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लोकप्रकाश का समीक्षात्मक अध्ययन लेश्या का विभिन्न द्वारों से कथन
उपाध्याय विनयविजय कृत लोकप्रकाश तथा श्वेताम्बर एवं दिगम्बर परम्परा के विभिन्न ग्रन्थों एवं दिगम्बर परम्परा के विभिन्न ग्रन्थों के आधार पर यहाँ १५ द्वारों से लेश्या का निरूपण किया जा रहा है, जिससे लेश्या का विशेष स्वरूप प्राप्त हो सकेगा। नाम- कृष्ण, नील, कापोत, तेजो, पद्म एवं शुक्ल ये छहों नाम द्रव्य लेश्या के नाम हैं। भावलेश्याएँ असंख्य हैं। वर्ण- लेश्याओं के वर्ण के सम्बन्ध में इस प्रकार विवेचन उपलब्ध होता है1. कृष्णलेश्या-खंजन नामक पक्षी, अंजन, काले बादल, भ्रमर, कोयल और हाथी के रंग
के समान कृष्ण वर्ण युक्ता" 2. नील लेश्या-तोता, चाषपक्षी-नीलकण्ठ, मयूर पंख, कबूतर का कंठ तथा नीलकमल के ___ वन सदृश नीलवर्ण युक्ता" 3. कापोत लेश्या- खादि वृक्ष का सार, शण के पुष्प और वृन्ताक पुष्प के रंग समान
कापोत वर्णयुक्ता" 4. तेजोलेश्या- पद्मरागमणि, उदीयमान सूर्य, संध्या, चनोटी के आधे भाग और परवाल
के रंग के समान लाल वर्णयुक्त। 5. पद्मलेश्या- स्वर्ण, जूहीपुष्प, स्वर्णकर्णिका पुष्प, चम्पकपुष्प आदि से भी उत्कृष्ट ___ पीतवर्णयुक्ता" 6. शुक्ललेश्या- गाय के दूध, समुद्र के फेन, दही तथा शरत् ऋतु के बादल समान श्वेत
वर्ण युक्त।" गन्ध- कृष्ण आदि छह द्रव्य लेश्याओं में प्रथम तीन लेश्याएँ अप्रशस्त, अति दुर्गन्ध से भरी हुई एवं मलिन हैं तथा अन्तिम तीन तेजो, पद्म एवं शुक्ल लेश्या अत्यन्त सुवासित, प्रशस्त और निर्मल हैं। भावलेश्या में गंध नहीं होती। उत्तराध्ययन सूत्रकार के अनुसार इन अप्रशस्त लेश्याओं की गन्ध मृत गाय, मृत कुत्ता और मृत सर्प की दुर्गन्ध से भी अनन्तगुणा दुर्गन्ध वाली होती है। शेष तीन प्रशस्त लेश्याएँ सुरभित पुष्पों तथा घिसे हुए सुगन्धित द्रव्यों से भी अनन्तगुणा सुगन्ध वाली होती
रस- द्रव्यलेश्याओं के पाँच रस इस प्रकार हैं
1. कृष्ण-नीम, कड़वा त्रपुशी, तुम्बिका, नीम की छाल एवं उसके फल के समान कटुक