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जीव-विवेचन (2)
संज्वलन। जब तक अनन्तानुबंधी क्रोध, मान, माया, और लोभ रहते हैं तब तक सम्यक्त्व की प्राप्ति नहीं होती। अप्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया और लोभ जब तक रहते हैं तब तक देशविरति नहीं होती। इसी प्रकार प्रत्याख्यानावरण चतुष्क के रहते सर्वविरति नहीं होती। संज्वलन कषाय यथाख्यात चारित्र के उत्पन्न नहीं होने देते। ईषत्कषाय को अथवा कषाय में सहायक को जैनदर्शन में 'नो कषाय' कहा गया है। जो संख्या में नौ हैं- हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुरुषवेद और नपुंसकवेद। संसार में सबसे अधिक जीव लोभी हैं।
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संदर्भ
१. लोकप्रकाश, 3.211 २. स्थानांग सूत्र, अध्ययन 4, उद्देशक 1, सूक्त 276 ३. लोकप्रकाश, 7.10
लोकप्रकाश,7.52 लोकप्रकाश, 7.53 लोकप्रकाश, 7.54 लोकप्रकाश, 7.55 लोकप्रकाश, 8.76 लोकप्रकाश, 8.77 लोकप्रकाश, 9.9 लोकप्रकाश, 9.10
लोकप्रकाश, 5.257 १३. (क) लोकप्रकाश, भाग 5.260-261
(ख) 'मूले कन्दे खंधे तया य साले पवाल पत्ते य।
___सत्त सुविधणुपुहत्तं अंगुल जो पुप्फफल बीए।-भगवती सूत्र, शतक 21, वृत्ति से १४. लोकप्रकाश, 5.266
लोकप्रकाश, 5.267 १६. लोकप्रकाश, 5.270 १७. लोकप्रकाश, 5.271 १८. लोकप्रकाश, 5.272 . . --... - १६. लोकप्रकाश, 5.274-275 . २०. लोकप्रकाश, 6.147 २१. (अ) लोकप्रकाश,3.212 (आ) प्रज्ञापना सूत्र, 36वां समुद्घात पद, सूत्र 2085 व 2086 (इ)
'अथ समुद्घात इति क: शब्दार्थ? उच्यते- समिति- एकीभावे, उत्प्राबल्ये, एकीभावेन प्राबल्येन घातः समुद्घातः । प्रज्ञापना वृत्ति, उद्धृत अभिधानराजेन्द्रकोष, भाग 7, पृष्ठ 435