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जीव-विवेचन (2)
रस वाली कृष्णलेश्या है।२२ 2. नील- पीपल, अदरक, कालीमिर्च, राजिका तथा गजपीपल के तुल्य अत्यन्त तिक्त
रस वाली नीललेश्या है।२३ 3. कापोत- कच्चे बिजोरा, कपित्थ, बेर, कटहल और आंवले के समान अनन्तगुणा
कषैली कापोतलेश्या है।२४ 4. तेजो-वर्ण, गंध, रसयुक्त पके हुए आम फल आदि के समान मधुर आम्ल रस वाली
तेजोलेश्या है। 5. पदम-द्राक्ष, खजूर, महुए आदि के आसव तथा मदिरा के समान अनन्तगुना आम्ल,
कषैला एवं मधुर रस वाली पद्मलेश्या है।२६ 6. शुक्ल- शक्कर, गुड़, मिश्री, गन्ना आदि के समान अति मधुर रस वाली शुक्ल
लेश्या है। स्पर्श-प्रथम तीन लेश्याओं में शीत और रूक्ष स्वभाव वाले परमाणुओं का आधिक्य होने से इनका स्पर्श कठोर होता है तथा अन्तिम तीन लेश्याओं में उष्ण और स्निग्ध स्वभाव के परमाणुओं के आधिक्य से ये लेश्याएँ कोमल स्पर्श वाली होती हैं। उत्तराध्ययन सूत्रकार का कहना है कि तीन अप्रशस्त लेश्याओं का स्पर्श करौत, गाय की जीभ, शाक के पत्ते से भी अनन्तगुणा कठोर होता है
और प्रशस्त लेश्याओं का स्पर्श नवनीत, शिरीष पुष्पों से भी अनन्तगुणा कोमल है।२६ प्रदेश और अवगाह- द्रव्यलेश्या अनन्त प्रदेशात्मक है और लेश्या का अवगाह क्षेत्र असंख्य प्रदेशात्मक है। आचार्य नेमिचन्द्र ने गोम्मटसार में लेश्या के अवगाहन पर विशेष विचार व्यक्त किया है कि प्रथम तीन लेश्याओं का अवगाह क्षेत्र सर्वलोक है तथा अन्तिम तीन लेश्याओं का क्षेत्र लोक का असंख्यातवां भाग है। समुद्घात की अपेक्षा शुक्ल लेश्या का क्षेत्रावगाह सम्पूर्ण लोक परिमाण होता है। स्थान- द्रव्यलेश्या की अपेक्षा से लेश्या के असंख्य स्थान है। ये स्थान पुद्गल की मनोज्ञता-अमनोज्ञता, सुगन्धता-दुर्गन्धता, विशुद्धता-अविशुद्धता तथा शीत-रूक्षता अथवा स्निग्ध-उष्णता की हीनाधिकता की अपेक्षा से है। काल की अपेक्षा से असंख्य अवसर्पिणी उत्सर्पिणी काल में जितने समय हैं उतने लेश्या के स्थान हैं। क्षेत्र की अपेक्षा से लोकाकाश प्रमाण लेश्या के
स्थान हैं। २३
भावलेश्या के स्थान द्रव्यलेश्या सापेक्ष हैं, क्योंकि पूर्व में भी कहा है कि द्रव्यलेश्या के स्थान