________________
73
लोक-स्वरूप एवं जीव-विवेचन (1)
रटजर्स विश्वविद्यालय के डॉ. वाक्समन ने सिद्ध किया कि मिट्टी की सौंधी महक मिट्टी में रहने वाले लाखों माइक्रो एवं असंख्य बैक्टीरिया जीवों की देन है।"३
प्रत्येक जीव के अपने स्वाभाविक विशेष गुण-धर्म होते हैं। इसी प्रकार पृथ्वीकायिक जीवों की अपनी-अपनी विशेषता से कोई मिट्टी रोगविनाशक होती है तो कोई रोगवर्द्धक, कोई स्नेह-प्रेम वर्द्धक होती है तो कोई हिंसकप्रवृत्ति, क्रूरता आदि की वृद्धि करती है।
___ तात्पर्य यह है कि विज्ञान ने आज पृथ्वीकाय के एक कण में अगणित जीवों का होना, स्वतः भूमि का उठाव होना, पर्वत शिखरों की ऊँचाई बढ़ना, नवीन पर्वतों का जन्म होना तथा पृथ्वी की प्रकृति का मानव प्रकृति पर प्रभाव पड़ना आदि तथ्यों को सिद्ध कर दिया है। अतः ये सभी तथ्य प्रमाणित करते हैं कि पृथ्वीकाय भी अन्य प्राणियों के तुल्य सजीव है। अप्काय-अंगुल के असंख्यातवें भाग के बराबर वाले अप्कायिक जीवों का शरीर इतना सूक्ष्म होता है कि जल की एक बूंद में असंख्य अप्कायिक जीव रहते हैं। प्रसिद्ध वैज्ञानिक कैप्टिन स्केवेसिवी ने एक जलकण में ३६४५० जीव गिनाए हैं", जो जैनदर्शन के अनुसार त्रस जीव हैं। अप्काय तो असंख्यात स्थावर जीवों का पिण्ड है। वैज्ञानिक अनुसंधानकर्ताओं ने यह सिद्ध किया है कि वर्षा की एक बूंद लगभग पाँच लाख मेघबूंदों एवं करोड़ों वाष्प कणों से मिलकर बनती है। इस दृष्टि से जल की एक बूंद में खरबों वाष्प कण और असंख्य जीव होते हैं।
____ आगम ग्रन्थों में प्राकृतिक रूप में पाए जाने वाले जलीय पदार्थ के ओस, हिम, धुंअर, शुद्ध जल, शीत जल, उष्णजल, खाराजल, मीठाजल आदि अनेक प्रकार कहे गए हैं और जल की सात लाख योनियाँ कही गई हैं।" आधुनिक विज्ञान भी जलमात्र को एक समान न मानकर अनेक प्रकार का मानता है, यथा- शुद्ध जल, भारी जल, लवणीय जल, गंधकीय जल आदि।
जैसे पार्थिव पदार्थों के कण पिण्ड रूप में एक होकर भी निज रूप में पृथक्-पृथक् होते हैं, वैसे ही जल के कण पिण्ड रूप में एक होकर भी पृथक्-पृथक् होते हैं।
आशय यह है कि वैज्ञानिक अनुसंधानों से जैसे-जैसे जल के रहस्य प्रकट होते जायेंगे, वैसे-वैसे आगमों में वर्णित जल के शेष कथन भी विज्ञान जगत् में मान्य होते जायेंगे। तेजस्काय- अग्निकाय (तेजस्काय) की सजीवता इसी से सिद्ध है कि अग्नि उसी प्रकार श्वासोच्छ्वास लेती है जैसे अन्य जीव लेते हैं। अग्नि भी श्वास लेने में ऑक्सीजन ग्रहण करती है
और श्वास छोड़ने में कार्बनडाईऑक्साइड बाहर निकालती है। अर्थात् अग्नि हवा में ही जीवित रहती है एवं जलती है। जिस प्रकार जुगनुओं, कुछ प्रकार की विशेष मछलियों एवं अन्य प्राणियों के शरीर में प्रकाश होता है उसी प्रकार अग्निकाय के जीवों के शरीर में भी प्रकाश होता है। त्रस प्राणियों