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लोक-स्वरूप एवं जीव-विवेचन (1) संस्थान' है और जिस कर्म से यह संस्थान प्राप्त होता है वह कर्म ‘वामनशरीर संस्थान' नामकर्म है।०२ विनयविजय के अनुसार मस्तक, गर्दन, हाथ-पैर मनोहर शुभलक्षणों से युक्त हों और शेष शरीर के अवयव बौने हों वह वामन शरीर संस्थान है। २०३ (5) कुब्ज संस्थान- पीठ पर बहुत से पुद्गलों का बड़ा पिण्ड बनना कुब्ज या कुबड़ापन कहलाता है। ऐसा कुब्ज अवयवों वाला शरीर कुब्ज शरीर संस्थान होता है। जिस शरीर में मस्तक, गर्दन, हाथ और पैर अशुभ और शेष अवयव सुन्दर होते हैं उसे लोकप्रकाशकार कुब्ज शरीर संस्थान कहते हैं।२०५ (6) हुण्डक संस्थान- विषम आकार वाले पाषाणों से भरी हुई मशक के समान सभी ओर से विषम अवयवों वाला शरीर हुण्डक शरीर संस्थान कहलाता है।०६ विनयविजय के अनुसार जिस शरीर के सभी अवयव खराब अशुभ लक्षणों से युक्त होते हैं, वह शरीर हुण्डक संस्थान है। २००
उपर्युक्त ६ प्रसिद्ध संस्थानों के अतिरिक्त पूज्यपाद देवनन्दी एवं द्रव्यसंग्रह के टीकाकार ब्रह्मदेव के आधार पर इत्थं, अनित्यं तथा व्यक्त-अव्यक्त के रूप में भी विनयविजय ने संस्थानों का निरूपण किया है। (7) इत्थं-अनित्थं संस्थान- जिस आकार की किसी के साथ तुलना की जा सकती है वह इत्थं संस्थान और किसी के साथ अतुलनीय आकार अनित्थं संस्थान कहलाता है। यथा- मेघ, नदी, सागर का जल आदि अनियत रचना विशेष होने से अनित्थं शरीर संस्थान स्वरूप हैं तथा गेंद, स्टूल, किताब आदि पदार्थों की रचना गोल, त्रिकोण, चतुष्कोण आदि रूप में नियत होने से इत्थं शरीर संस्थान स्वरूप है। ३०८ (8) व्यक्त-अव्यक्त संस्थान- जिस आकार का वृत्त, त्रिकोण, चतुष्कोण आदि निश्चित कथन किया जा सकता है वह व्यक्त संस्थान होता है तथा जिस रचना विशेष का कोई निश्चित कथन नहीं किया जा सकता है वह अव्यक्त संस्थान कहलाता है- 'वृत्तत्रिकोणचतुष्कोणादिव्यक्ताव्यक्तरूपं बहुधा संस्थानम्। संस्थानों का स्वामित्व
सर्व सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीवों के हुण्डक संस्थान होता है। बादर एकेन्द्रियों के हुण्डक संस्थान भी भिन्न-भिन्न रूपों में दृष्टिगोचर होता है। पृथ्वीकाय का शरीर मसूर और चन्द्राकार है। अप्काय स्तिबुक की आकृतिवाला है। अग्निकाय का शरीर सूई के आकार के समान है और वायुकाय शरीर ध्वजा के आकार के तुल्य है। प्रत्येक और साधारण दोनों प्रकार की वनस्पतिकाय के शरीर का